Tuesday, 8 July 2014

Today's Subhashita.

नमन्ति फलिनो वृक्षाः नमन्ति गुणिनो जनाः  |
शुष्क काष्ठश्च मूर्खाश्च न नमन्ति कदाचन    ||

अर्थ -    फलदायक वृक्ष अपने फलों के भार से झुक जाते हैं और इसी प्रकार गुणवान व्यक्ति भी अपने गुणों के कारण झुकते  (विनम्र रहते) हैं |  परन्तु सूखी लकडी और मूर्ख व्यक्ति कभी भी नहीं झुकते हैं |

( इस सुभाषित में गुणवान व्यक्तियों की तुलना एक फलदायक हरे भरे वृक्ष से की गयी है और एक मूर्ख की तुलना एक सूखी टहनी  से की गयी है |  पेड् में  जितने अधिक फल लगेंगे उसकी डालियां उतनी ही अधिक झुक जाती हैं और जितना अधिक गुणवान व्यक्ति होगा उतना ही विनम्र होगा | इस के विपरीत जिस प्रकार एक सूखी लकडी मुड (झुक) नहीं सकती उसी प्रकार एक मूर्ख व्यक्ति झुक नहीं सकता यानी उसकी प्रवृत्ति में कोई  वांछित अच्छा परिवर्तन नहीं किया जा सकता है |

Namanti phalino vrukshaah namanti gunino janaah.
shushka kaashthashch moorkhashch na namanti kadaachan.

Namanti = bend.     Phalino = fruits bearing.    Vrukshaah = trees.    Gunino = endowed with good qualities.
Janaah = persons.      Shushka = dry/      kaashthashch = kaashthah +cha.    Kaashthah +  wood /
Cha = and,      Moorkhashch = Moorkhh + cha,       Moorkhh =a foolish person;    Na = not.  
Kadaachan = never.

i..e.      Fruit bearing trees when laden with fruits bow down and so also persons endowed with many virtues and qualities bow down (are very polite and submissive).  On the other hand dry wood and foolish persons never bow down (are very rigid and unwieldy) and would rather break down than change.

(In this Subhashita noble and knowledgeable persons have been compare to a fruit bearing tree and  foolish persons to a dried piece of wood.  The more a tree is leaden with fruits the more it bows down and similarly the more learned  a person is the more he is courteous, whereas like the dried wood a foolish person is unwieldy. )

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