Wednesday, 23 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


समाने  शोभते  प्रीतिः  राज्ञि सेवा  च  शोभते  |
वाणिज्यं  व्यवहारेषु  दिव्या  स्त्री शोभते गृहे  ||
                                - चाणक्य नीति  (२/२० )

भावार्थ -     मित्रता और प्रेम  करना  (सामाजिक और आर्थिक रूप
से ) अपने  ही समान व्यक्ति से  ही शोभा देता है   महारानी की सेवा
में नियुक्त व्यक्ति भी शोभित होता है |  व्यापार करने मे व्यवहार
कुशलता   ही शोभा देती  है  तथा  दैवीय  गुणों से युक्त  सुन्दर स्त्री
से उसका घर सुशोभित होता है  |
(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने रामायण महाकाव्य
में इस प्रकार  व्यक्त किया है :-
                   प्रीति विरोध समान सन करिय  नीति असि आहि |
                    जों मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कह्इ कोउ ताहि   ||
                                                                  -लङ्का काण्ड  २३(ग )
Samaane shobhate preetih raagyi sevaa cha shobhate.
Vaanijyam vyavahaareshu  divyaa stree  shobhate gruhe.

Samaane = equal.    Shobhate = look beautiful, adorned.
Preetih = love, friendly disposition.    Raagyi = queen's
Seva = service.   Cha = and.    Vaanijyam = commerce,
trade.   Vyavahareshu = the way of dealing with the clients.
Divyaa = divine. virtuous  Stree=woman. Gruhe=at home. 

i.e.    Love and friendship is adorned only between persons
equal in (social and financial) status. A person in the service
of the Queen is also adorned.     Any trade or business is
adorned by the ethical way of dealing with the customers, and
a home is adorned by a virtuous woman with divine qualities.

  

No comments:

Post a Comment