समाने शोभते प्रीतिः राज्ञि सेवा च शोभते |
वाणिज्यं व्यवहारेषु दिव्या स्त्री शोभते गृहे ||
- चाणक्य नीति (२/२० )
भावार्थ - मित्रता और प्रेम करना (सामाजिक और आर्थिक रूप
से ) अपने ही समान व्यक्ति से ही शोभा देता है महारानी की सेवा
में नियुक्त व्यक्ति भी शोभित होता है | व्यापार करने मे व्यवहार
कुशलता ही शोभा देती है तथा दैवीय गुणों से युक्त सुन्दर स्त्री
से उसका घर सुशोभित होता है |
(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने रामायण महाकाव्य
में इस प्रकार व्यक्त किया है :-
प्रीति विरोध समान सन करिय नीति असि आहि |
जों मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कह्इ कोउ ताहि ||
-लङ्का काण्ड २३(ग )
Samaane shobhate preetih raagyi sevaa cha shobhate.
Vaanijyam vyavahaareshu divyaa stree shobhate gruhe.
Samaane = equal. Shobhate = look beautiful, adorned.
Preetih = love, friendly disposition. Raagyi = queen's
Seva = service. Cha = and. Vaanijyam = commerce,
trade. Vyavahareshu = the way of dealing with the clients.
Divyaa = divine. virtuous Stree=woman. Gruhe=at home.
i.e. Love and friendship is adorned only between persons
equal in (social and financial) status. A person in the service
of the Queen is also adorned. Any trade or business is
adorned by the ethical way of dealing with the customers, and
a home is adorned by a virtuous woman with divine qualities.
No comments:
Post a Comment