Friday, 25 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः  |
व्यसनं  केन  न प्राप्तं  कस्य सौख्यं  निरन्तरम्  ||
                                         - चाणक्य नीति (३/१)

भावार्थ -    इस संसार में ऐसा कोई भी  व्यक्ति नहीं है जिस के
कुल में कोई  भी दोष नहीं हो , जो  विभिन्न रोगों से पीडित नहीं
हुआ हो ,  उसे विपत्तियों  का कभी भी सामना न करना पडा हो 
तथा निरन्तर  सुखी जीवन व्यतीत कर रहा  हो |

(इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि मानव जीवन मे सुख, दुख,और
विपत्तियों का आना जाना लगा रहता है तथा हर परिवार में कोई न
कोई दोष अवश्य होता है | )

Kasya doshah kule naasti  vyaadhinaa ko na peeditah.
Vyasanam kena na praaptam kasya saukhyam nirantaram.

Kasya = whose.   Doshah = defect.   Kule = in the family.
Naasti =non existence.    Vyaadhinaa = from diseases.
Ko = who.       Na = not.        Peeditah = suffering from.
Vyasanam = calamity, disaster.   Kena = how?   Praaptam=
met with, faced.      Saukhyam =   comfort, happiness.
Nirantaram = uninterrupted, continuously.

i.e.     In this world there is no such person whose family
lineage is unblemished . has never suffered from  any disease
or faced any calamity, and enjoys uninterrupted comforts
and happiness.

1 comment:

  1. व्यसनम् = addiction = लत, आसक्ति

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