कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः |
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ||
- चाणक्य नीति (३/१)
भावार्थ - इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिस के
कुल में कोई भी दोष नहीं हो , जो विभिन्न रोगों से पीडित नहीं
हुआ हो , उसे विपत्तियों का कभी भी सामना न करना पडा हो
तथा निरन्तर सुखी जीवन व्यतीत कर रहा हो |
(इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि मानव जीवन मे सुख, दुख,और
विपत्तियों का आना जाना लगा रहता है तथा हर परिवार में कोई न
कोई दोष अवश्य होता है | )
Kasya doshah kule naasti vyaadhinaa ko na peeditah.
Vyasanam kena na praaptam kasya saukhyam nirantaram.
Kasya = whose. Doshah = defect. Kule = in the family.
Naasti =non existence. Vyaadhinaa = from diseases.
Ko = who. Na = not. Peeditah = suffering from.
Vyasanam = calamity, disaster. Kena = how? Praaptam=
met with, faced. Saukhyam = comfort, happiness.
Nirantaram = uninterrupted, continuously.
i.e. In this world there is no such person whose family
lineage is unblemished . has never suffered from any disease
or faced any calamity, and enjoys uninterrupted comforts
and happiness.
व्यसनम् = addiction = लत, आसक्ति
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