Friday, 4 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


देहीति  वचनं श्रुत्वा हृदिस्थाः  पञ्च देवताः  |
मुखान्निर्गत्य  गच्छन्ति  श्रीह्रीधीधृतिकीर्तयः ||
                      - सुभाषित रत्नाकर ( शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   "कृपया मुझे  यह वस्तु  प्रदान करें " -एक याचक द्वारा
उसके मुंह से निकले  हुए इन शब्दों के  सुनते ही उस व्यक्ति के हृदय
स्थित श्री (वैभव), लज्जा, बुद्धि , धैर्य तथा कीर्ति ये पांच दैवीय  गुण
तुरन्त पलायन कर जाते  हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'याचकनिन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
एक याचक को अपने आत्मसम्मान से तो वञ्चित होना ही पडता है,
कालान्तर में उसके अन्य गुण और संपत्ति भी नष्ट हो जाते हैं | यही
इस सुभाषित का संदेश है | )

Deheeti vachanam shrutvaa hrudisthaah pancha  devataah.
Mukhaannirgatya gacchanti shree-hree-dhee-dhruti-keertayah.

Deeheeti = dehi + iti.    Dehi = give me.   Iti = so, thus.
Vachanam = utterance.    Shrutvaa = listening.   Hrudisthaah=
being in the heart.    Panch = five.   Devataah = Gods, divinity.
Mukhaannirgatya =  Mukhaat + nirgatya.    Mukhaat = from
the mouth    Nirgatya = coming out of.    Gacchanti = go, quit.
Shree = wealth.    Hree =shame.   Dhee - intellect.   Dhruti=
courage.     Keertayah =glory, reputation.

i.e.    'Please grant me this favour'  - no sooner a person utters
these words from his mouth, listening to them the five virtues
namely wealth, shame, intellect, courage and glory enshrined
in his heart also depart immediately.

(The idea behind this Subhashita is that not only a beggar loses
his self-respect but also other virtues in the longer run.)




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