अधममित्रकुमित्रसमागमः प्रियवियोगभयानि दरिद्रता |
अपयशः खलु लोकपराभवो भवति पापतरोः फलमीदृशं ||
अर्थ - अधम और नीच मित्रों की संगति का दुष्परिणाम प्रिय जनों का वियोग, दरिद्रता , अपयश तथा समाज में अपमान के रूप में होता है | निश्चय ही पापरूपी वृक्ष में ऐसे ही फल उत्पन्न होंगे |
(इस सुभाषित में दुर्जन और नीच व्यक्तियों से मित्रता की तुलना एक पापवृक्ष से की गयी है और उसके दुष्परिणामों की तुलना उसके फलों से की गयी है| )
अपयशः खलु लोकपराभवो भवति पापतरोः फलमीदृशं ||
अर्थ - अधम और नीच मित्रों की संगति का दुष्परिणाम प्रिय जनों का वियोग, दरिद्रता , अपयश तथा समाज में अपमान के रूप में होता है | निश्चय ही पापरूपी वृक्ष में ऐसे ही फल उत्पन्न होंगे |
(इस सुभाषित में दुर्जन और नीच व्यक्तियों से मित्रता की तुलना एक पापवृक्ष से की गयी है और उसके दुष्परिणामों की तुलना उसके फलों से की गयी है| )
Adhama-mitra-kumitra-samaagamah. Priyaviyoga bhayaani daridrataa.
Apayashah khalu loka-paraabhavah . Bhavatipaapataro phalameedrusham.
Adhama = inferior, vile. Mitra = friend. Kumitra = bad friend. Samaagamh = association with .
Priyaviyoga = Priya+viyog. Priya = dear, beloved. Viyoga = separation. Bhayaani= fear, perils.
Daridrataa = poverty, penury. Apayashh = defame, disgrace. Khalu = surely, truly.
Loke= in the public, in the society. Parabhava = defeat, humiliation. Bhavati = happens, becomes.
Paaptaroh= paap +taroh. Paap =sins, crimes. Taroh = tree's.. Phalameedrusham = Phala+eedrusham . Phala = fruits. Eedrusham = such, like this.
i.e. Association with inferior and vile friends results in separation from near and dear persons, fear and perils of various kinds, penury, defamation and humiliation in public. Surely a tree of sins can bear only such bad fruits.
(In this Subhashita author by the use of a Simile, friendship with lowly and vile persons as a tree of sins and the consequences thereof to the bitter fruits of that tree, the author has warned against such friendship.)
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