अपि संपूर्णतायुक्तैः कर्तव्या सुहृदो बुधैः |
नदीशः परिपूर्णोऽपि चन्द्रोदयमपेक्षते ||
अर्थ - बुद्धिमान व्यक्ति हर दृष्टि से संपन्न और संपूर्ण होते हुए भी अन्य
योग्य व्यक्तियों से मित्रता करना अपना कर्तव्य समझते हैं | देखो ना ! समस्त
नदियों का स्वामी समुद्र भी यद्यपि सदैव पूरी तरह् भरा रहता है, उसे भी और
अधिक उठने के लिये चन्द्रमा के उदय होने की अपेक्षा होती है |
(इस सुभाषित में चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से समुद्र में ज्वार आने से उसके जल
स्तर में वृद्धि को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त किया गया है | इसी प्रकार हर तरह् से
संपूर्ण व्यक्ति भी यदि अच्छे लोगों से मित्रता करते हैं तो उस से उन्हें लाभ ही
होता है | यही इस सुभाषित का तात्पर्य है |)
Api sampoornataayukteh kartavyaa suhrudo budhaih.
Nadeeshah paripoornopi chandrodayamapekshate.
Api = even. sampoornataa = perfection, complete in all respects.
Yuktaih = endowed with. Kartavyaa = duty . Suhrudo = friend.
Budhaih = learned persons. Nadeeesh = the Ocean. Paripoornopi =
paripoorn + api. . Paripoorna = completely filled with.
Chandrodayamapekshate = chandrodayam + apekshete.
Chandrodayam = rising of the Moon in the sky.
Apekshate = expects, needs.
i.e. Learned person endowed with perfection in all respects, still consider
it their duty to befriend other good persons. Look ! how the Ocean needs
the Moon to rise in the sky for further increasing its level.
( In the above Subhashita the author has skillfully used the simile of the
phenomenon of creation of tides in the Ocean due to the gravitational pull
of the Moon/ If learned men befriend other noble persons, they will
definitely benefit from such friendship in the long run, even if they may
not be in need of any help.)
नदीशः परिपूर्णोऽपि चन्द्रोदयमपेक्षते ||
अर्थ - बुद्धिमान व्यक्ति हर दृष्टि से संपन्न और संपूर्ण होते हुए भी अन्य
योग्य व्यक्तियों से मित्रता करना अपना कर्तव्य समझते हैं | देखो ना ! समस्त
नदियों का स्वामी समुद्र भी यद्यपि सदैव पूरी तरह् भरा रहता है, उसे भी और
अधिक उठने के लिये चन्द्रमा के उदय होने की अपेक्षा होती है |
(इस सुभाषित में चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से समुद्र में ज्वार आने से उसके जल
स्तर में वृद्धि को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त किया गया है | इसी प्रकार हर तरह् से
संपूर्ण व्यक्ति भी यदि अच्छे लोगों से मित्रता करते हैं तो उस से उन्हें लाभ ही
होता है | यही इस सुभाषित का तात्पर्य है |)
Api sampoornataayukteh kartavyaa suhrudo budhaih.
Nadeeshah paripoornopi chandrodayamapekshate.
Api = even. sampoornataa = perfection, complete in all respects.
Yuktaih = endowed with. Kartavyaa = duty . Suhrudo = friend.
Budhaih = learned persons. Nadeeesh = the Ocean. Paripoornopi =
paripoorn + api. . Paripoorna = completely filled with.
Chandrodayamapekshate = chandrodayam + apekshete.
Chandrodayam = rising of the Moon in the sky.
Apekshate = expects, needs.
i.e. Learned person endowed with perfection in all respects, still consider
it their duty to befriend other good persons. Look ! how the Ocean needs
the Moon to rise in the sky for further increasing its level.
( In the above Subhashita the author has skillfully used the simile of the
phenomenon of creation of tides in the Ocean due to the gravitational pull
of the Moon/ If learned men befriend other noble persons, they will
definitely benefit from such friendship in the long run, even if they may
not be in need of any help.)
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