अपेक्षन्ते न च स्नेहं न पात्रं न दशान्तरं |
सदा लोकहितासक्ता रत्नदीप इवोत्तमा ||
अर्थ - जिस प्रकार एक रत्नदीप को किसी स्थान को प्रकाशित करने के लिये न तो तेल ,
न तेलपात्र (दिया) और न बाती की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सदैव लोकहित के कार्यों
को संपन्न करने में समर्पित श्रेष्ठ व्यक्ति भी इन कार्यों के प्रतिफल के रूप में न आदर की
अपेक्षा करते है और न सहायता करने में कोई भेद भाव करते हैं और न अपनी (आर्थिक)
स्थिति का विचार करते हैं और समाज को लाभान्वित करते हैं |
( इस सुभाषित में स्नेह, पात्र, दशान्त इस शब्दों के दो अर्थों (क्रमशः तेल/आदर, दिया/व्यक्ति,
बाती/ आर्थिक साधन )को चतुरता पूर्वक प्रयुक्त कर एक रत्नदीप की उपमा एक श्रेष्ठ समाजसेवी
व्यक्ति से की गयी है | जिस प्रकार एक रत्नदीप को प्रकाश देने के लिये तेल, पात्र और बाती की
आवश्यकता नहीं होती उसी प्रकार एक समाजसेवी भी अपने ही संसाधनों से बिना किसी प्रतिफल
के समाजसेवा के कार्य में सदैव तत्पर रहता है |
Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.
Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa ivottamaa.
Apekshante = expect, require. Na = not. Sneham = (i) love, respect.
(ii) oil. Paatram = (i) a pot (ii) a deserving person. Dashantaram =
(i) end of a wick of an oil lamp (ii) supply line of funds for charity.
Sadaa = always. Lokahitaasaktaa = lokahita +aasaktaa. Likahit = welfare
of common people. Aasaktaa = involved, devoted to. Ratnadeepaa = self
illuminating jeweled lamp. Ivottamaa = iva +uttamaa. Iva = like, similar to.
Uttamaa = honourable and righteous persons.
i. e. Just as a self illuminating jeweled lamp does not require oil, a lamp and a wick
to brighten a place, in the same manner honourable and righteous persons devoted to
the welfare of the society do their philanthropic work without expecting any respect
in return of such work and do not differentiate between the deserving persons, as
also do not depend upon others to finance their such activities.
( The author of this Subhashita has skillfully used the two meanings of the words 'sneha',
'patra' and 'dashantar' and used a simile of a jewel lamp for a philanthropic person, who
uses his wealth for such work without expecting anything in return.)
सदा लोकहितासक्ता रत्नदीप इवोत्तमा ||
अर्थ - जिस प्रकार एक रत्नदीप को किसी स्थान को प्रकाशित करने के लिये न तो तेल ,
न तेलपात्र (दिया) और न बाती की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सदैव लोकहित के कार्यों
को संपन्न करने में समर्पित श्रेष्ठ व्यक्ति भी इन कार्यों के प्रतिफल के रूप में न आदर की
अपेक्षा करते है और न सहायता करने में कोई भेद भाव करते हैं और न अपनी (आर्थिक)
स्थिति का विचार करते हैं और समाज को लाभान्वित करते हैं |
( इस सुभाषित में स्नेह, पात्र, दशान्त इस शब्दों के दो अर्थों (क्रमशः तेल/आदर, दिया/व्यक्ति,
बाती/ आर्थिक साधन )को चतुरता पूर्वक प्रयुक्त कर एक रत्नदीप की उपमा एक श्रेष्ठ समाजसेवी
व्यक्ति से की गयी है | जिस प्रकार एक रत्नदीप को प्रकाश देने के लिये तेल, पात्र और बाती की
आवश्यकता नहीं होती उसी प्रकार एक समाजसेवी भी अपने ही संसाधनों से बिना किसी प्रतिफल
के समाजसेवा के कार्य में सदैव तत्पर रहता है |
Apekshante na cha sneham na patram na dashaantaram.
Sadaa lokahitaasaktaa ratnadeepa ivottamaa.
Apekshante = expect, require. Na = not. Sneham = (i) love, respect.
(ii) oil. Paatram = (i) a pot (ii) a deserving person. Dashantaram =
(i) end of a wick of an oil lamp (ii) supply line of funds for charity.
Sadaa = always. Lokahitaasaktaa = lokahita +aasaktaa. Likahit = welfare
of common people. Aasaktaa = involved, devoted to. Ratnadeepaa = self
illuminating jeweled lamp. Ivottamaa = iva +uttamaa. Iva = like, similar to.
Uttamaa = honourable and righteous persons.
i. e. Just as a self illuminating jeweled lamp does not require oil, a lamp and a wick
to brighten a place, in the same manner honourable and righteous persons devoted to
the welfare of the society do their philanthropic work without expecting any respect
in return of such work and do not differentiate between the deserving persons, as
also do not depend upon others to finance their such activities.
( The author of this Subhashita has skillfully used the two meanings of the words 'sneha',
'patra' and 'dashantar' and used a simile of a jewel lamp for a philanthropic person, who
uses his wealth for such work without expecting anything in return.)
Atishay sunder bhav
ReplyDeleteसुभाषित और अर्थ अच्छा लगा। मेहनत की दाद देनी होगी।
ReplyDelete