अर्थेरर्था निबध्यन्ति गजैरिव महागजाः |
न ह्यनर्थवता शक्यं वाणिज्यं कर्तुमीहया ||
अर्थ - धन के द्वारा ही और अधिक धन अर्जित करना उसी तरह
सम्भव होता है जैसे कि पालतू हाथियों की सहायता से एक जंगली
गजराज को पकड कर पालतू बनाया जाता है | इसी कारण से यदि
कोई व्यक्ति निर्धन हो तो निश्चय ही उसके लिये व्यापार करने का
प्रयत्न करना भी संभव नहीं है |
(इस सुभाषित में पालतू हाथियों द्वारा बडे जंगली हाथियों को पकड कर
वश में करने की उपमा दे कर एक छोटी सी पूंजी से व्यापार आरम्भ कर
और अधिक धनी होने की प्रक्रिया को बडी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है )
Artherarthaa nibadhayante gajairiva mahaagajaah.
Na hynarathavataa shakyam vaanijyam kartumeehayaa.
Artherarthaa =arthaih +arthaa. Arthaih = (through ) wealth.
Arthaa ) various other forms of wealth. Nibadhyante =
captured., acquired. Gajairiva = gajaih + iva. Gajaih =
elephants. Iva = like. Mahaagajaah = big wild elephants
(tuskars). Na = not. Hyanarthvataa = hi = anarthavataa.
Hi = surely. Anarthvataa = persons not having any wealth'
Shakyam = possible Vanijyam = commerce, business.
Kartumeehayaa. Kartum + ihayaa. Kartum = doing.
Ihayaa = attempt .
i.e. Acquiring more wealth by the judicious use of the existing
wealth is just like capturing a wild tusker (elephant) with the help
of domesticated elephants. This implies that it is not possible for
a person having no wealth to even make an attempt to do business.
(The maxim of Economics that money begets more money, has been
beautifully outlined in this Subhashita through the use of a simile of
capturing of wild Tuskers with the help of domesticated elephants.)
न ह्यनर्थवता शक्यं वाणिज्यं कर्तुमीहया ||
अर्थ - धन के द्वारा ही और अधिक धन अर्जित करना उसी तरह
सम्भव होता है जैसे कि पालतू हाथियों की सहायता से एक जंगली
गजराज को पकड कर पालतू बनाया जाता है | इसी कारण से यदि
कोई व्यक्ति निर्धन हो तो निश्चय ही उसके लिये व्यापार करने का
प्रयत्न करना भी संभव नहीं है |
(इस सुभाषित में पालतू हाथियों द्वारा बडे जंगली हाथियों को पकड कर
वश में करने की उपमा दे कर एक छोटी सी पूंजी से व्यापार आरम्भ कर
और अधिक धनी होने की प्रक्रिया को बडी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है )
Artherarthaa nibadhayante gajairiva mahaagajaah.
Na hynarathavataa shakyam vaanijyam kartumeehayaa.
Artherarthaa =arthaih +arthaa. Arthaih = (through ) wealth.
Arthaa ) various other forms of wealth. Nibadhyante =
captured., acquired. Gajairiva = gajaih + iva. Gajaih =
elephants. Iva = like. Mahaagajaah = big wild elephants
(tuskars). Na = not. Hyanarthvataa = hi = anarthavataa.
Hi = surely. Anarthvataa = persons not having any wealth'
Shakyam = possible Vanijyam = commerce, business.
Kartumeehayaa. Kartum + ihayaa. Kartum = doing.
Ihayaa = attempt .
i.e. Acquiring more wealth by the judicious use of the existing
wealth is just like capturing a wild tusker (elephant) with the help
of domesticated elephants. This implies that it is not possible for
a person having no wealth to even make an attempt to do business.
(The maxim of Economics that money begets more money, has been
beautifully outlined in this Subhashita through the use of a simile of
capturing of wild Tuskers with the help of domesticated elephants.)
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