असन्तोषः परं दुःखं सतोषः परमं सुखं |
सुखार्थी पुरुषस्तस्यात्सन्तुष्टः सततं भवेत् ||
अर्थ = जो व्यक्ति संतोषी नहीं होता है वह् सदैव ही अत्यन्त दुःखी
रहता है और जो व्यक्ति संतोषी होता है वह् परम सुख का अनुभव करता
है | अतएव सुख की कामना करना वाले व्यक्ति को सदैव संतुष्ट रहना
चाहिये |
( संतोष वह् मनस्थिति है जिसमे व्यक्ति जो कुछ भी उसे उपलब्ध है उसी
पर वह् खुश रहता है अन्यथा इच्छायें तो अनन्त होती हैं और कभी पूरी
नहीं होती हैं | एक कवि का भी कथन है कि - 'गो धन गज धन बाजि धन और
रतन धन खानि | जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान ' , जो इसी
सुभाषित की भावना को व्यक्त करता है | )
Aantoshah param suhkham santoshah paramam sukham.
Sukhaarthee purushastasyaatsantushtah satatam bhavet,
Asantosha = not being contended or satisfied at what one has got
or achieved. ParaM = extreme,.. Duhkham = grief, suffering.
Santoshah = satisfaction ParamM = supreme. Sukham =
pleasure, happiness. Sukhaarthee = one who seeks or wishes or
seeks happiness. Purushastasyaatsantushtah = Purushah + tasyaat
+santushtah. Purushah = a person. Tasyaat = he Santushtah +
satisfied, happy/ Satatam = continuously. Bhavet = should be.
i.e. A person who is not contended or satisfied at what he has got
or achieved, always remains unhappy,whereas a person who is satisfied
at his lot enjoys supreme bliss . Therefore, seekers of happiness must
always remain satisfied at what they have achieved.
सुखार्थी पुरुषस्तस्यात्सन्तुष्टः सततं भवेत् ||
अर्थ = जो व्यक्ति संतोषी नहीं होता है वह् सदैव ही अत्यन्त दुःखी
रहता है और जो व्यक्ति संतोषी होता है वह् परम सुख का अनुभव करता
है | अतएव सुख की कामना करना वाले व्यक्ति को सदैव संतुष्ट रहना
चाहिये |
( संतोष वह् मनस्थिति है जिसमे व्यक्ति जो कुछ भी उसे उपलब्ध है उसी
पर वह् खुश रहता है अन्यथा इच्छायें तो अनन्त होती हैं और कभी पूरी
नहीं होती हैं | एक कवि का भी कथन है कि - 'गो धन गज धन बाजि धन और
रतन धन खानि | जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान ' , जो इसी
सुभाषित की भावना को व्यक्त करता है | )
Aantoshah param suhkham santoshah paramam sukham.
Sukhaarthee purushastasyaatsantushtah satatam bhavet,
Asantosha = not being contended or satisfied at what one has got
or achieved. ParaM = extreme,.. Duhkham = grief, suffering.
Santoshah = satisfaction ParamM = supreme. Sukham =
pleasure, happiness. Sukhaarthee = one who seeks or wishes or
seeks happiness. Purushastasyaatsantushtah = Purushah + tasyaat
+santushtah. Purushah = a person. Tasyaat = he Santushtah +
satisfied, happy/ Satatam = continuously. Bhavet = should be.
i.e. A person who is not contended or satisfied at what he has got
or achieved, always remains unhappy,whereas a person who is satisfied
at his lot enjoys supreme bliss . Therefore, seekers of happiness must
always remain satisfied at what they have achieved.
No comments:
Post a Comment