अहङ्कारो धियं ब्रूते मैनं सुप्तं प्रबोधय |
उत्थिते परमानन्दे न त्वं नाहं न वै जगत् ||
अर्थ - जिस व्यक्ति की मानसिकता अहङ्कार (अपने व्यक्तित्व और
उपलब्धि पर अत्यधिक गर्व करना ) से भरी हो तो उसकी स्थिति एक सोये
हुए व्यक्ति व्यक्ति के समान होती है और उसकी इस परम आनन्द दायक
भ्रान्ति (नींद ) को दूर करने का कोई लाभ नहीं है क्यों कि इस के दूर होने पर
(जाग जाने पर) उसे यह आभास हो जायेगा कि इस संसार में न तो उसकी की
और न दूसरों की कोई महत्ता है |
Ahamkaaro dhiyam broote mainam suptam prabodhaya.
utthite paramaanande na tvam naaham na vai jagat
Ahmkaaram = ego , pride. Dhiyam = mind, mental attitude.
Broote = choose, proclaim. Mainam = maa +enam, Maa = not.
enam = that. Suptam = fallen asleep. Prabodhaya = awaken, warn .
Utthite =. upon rising/ Paramaanande = supreme bliss. Na = not.
Tvam you. Naahm = na + aham. Aham = I, me. Vai = a word
placed before another word for laying stress on it. Jagat =this World.
i.e. If a person's mind is full of ego and pride akin to a sleeping man,
it is of no use to awaken him from this situation, which he considers as
supreme bliss, because on being awaken (or warned) he will realise that
neither he nor others have any greatness in this world.
उत्थिते परमानन्दे न त्वं नाहं न वै जगत् ||
अर्थ - जिस व्यक्ति की मानसिकता अहङ्कार (अपने व्यक्तित्व और
उपलब्धि पर अत्यधिक गर्व करना ) से भरी हो तो उसकी स्थिति एक सोये
हुए व्यक्ति व्यक्ति के समान होती है और उसकी इस परम आनन्द दायक
भ्रान्ति (नींद ) को दूर करने का कोई लाभ नहीं है क्यों कि इस के दूर होने पर
(जाग जाने पर) उसे यह आभास हो जायेगा कि इस संसार में न तो उसकी की
और न दूसरों की कोई महत्ता है |
Ahamkaaro dhiyam broote mainam suptam prabodhaya.
utthite paramaanande na tvam naaham na vai jagat
Ahmkaaram = ego , pride. Dhiyam = mind, mental attitude.
Broote = choose, proclaim. Mainam = maa +enam, Maa = not.
enam = that. Suptam = fallen asleep. Prabodhaya = awaken, warn .
Utthite =. upon rising/ Paramaanande = supreme bliss. Na = not.
Tvam you. Naahm = na + aham. Aham = I, me. Vai = a word
placed before another word for laying stress on it. Jagat =this World.
i.e. If a person's mind is full of ego and pride akin to a sleeping man,
it is of no use to awaken him from this situation, which he considers as
supreme bliss, because on being awaken (or warned) he will realise that
neither he nor others have any greatness in this world.
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