Tuesday, 13 October 2015

Today's Subhashita.

आदौ   नम्राः पुनर्वक्राः स्वीयकार्येषु  तत्पराः  |
कार्यान्ते च पुनर्नम्राः  काण्डवास्तु  प्राणघातकाः ||
                          -महासुभषित सं ग्रह  (4757)

अर्थ -    प्रारम्भ में वे नम्र (सीधे सादे) व्यवहार करते हैं, परन्तु  अपने
उद्देश्य (कार्य) को पूरा करने  लिये वे वक्र (टेढे  या कुटिल) बन जाते हैं |
अपना कार्य पूरा होने के बाद वे पुनः नम्र बन जाते हैं | ऐसे कुटिल व्यक्ति
एक धनुषधारी के समान प्राणघातक होते हैं |

( इस  सुभाषित में लाक्षणिक रूप से दुष्ट व्यक्तियों की तुलना एक
धनुषधारी व्यक्ति से की  गयी है |  धनुष प्रारम्भ मे सीधा होता है  परन्तु
जब उससे बाण छोडना होता है तो उसेकी प्रत्यंचा (डोरी)को  खींच  कर
उसे टेढा  करना पडता है और बाण छूटने के बाद धनुष अपनी पूर्व स्थिति में
आ जाता है |  ऐसे ही दुष्ट व्यक्ति भी अपना कार्य सिद्ध करने  के लिये
प्रारम्भ मे नम्र तथा कार्यसिद्धि के लिये कठोर  और कार्य सिद्ध होने के बाद
फिर नम्र बन जाते हैं |


Aadau namraah punarvakraah sveeyakaaryeshu tatparaah
Kaaryaante cha punarvakraah kaandavaastyu praanaghaatakaah.

Adau = initially, in the beginning.     Namraah = polite, humble.
punarvakraah = punahh +vakraah.     Punahh = again.  Vakraah =
crooked.     Sveeyakaaryeshu = one's own business or duty.
Tatparaah = intent, determined.     Kaaryante = end of business.
Kaandavaastu = kaandavaah+tu.      Kaandavaah = archers
Tu = but,  and.     Praanaghatakaah = deadly,  life destroying.  

i.e.      Initially they (mean and wicked persons) are very polite,
but for fulfilling their objective they do not hesitate to become
crooked.  However, after achieving their objective they again
become polite. .  Such  persons are life destroying like an archer.

(In this Subhashita  indirectly mean and wicked persons have been
compared to a bow, which is normally straight.  But it bends by
pulling its string while aiming and throwing the arrow and  regains
it shape afterwards. Crooked persons' behaviour is just like that.)

1 comment:

  1. मैंने शिस्नवद्धि वणिक्जना:ऐसा चतुर्थ चरण सुंना है .
    ggujarpadhye@gmail.com

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