Friday, 23 October 2015

Today's Subhashita.

गुरुः  पिता गुरुर्माता  गुरुर्देवो  गुरुर्गतिः  |
शिवेरुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे  न कश्चन  ||

अर्थ -   एक  गुरु  हमारे   जन्मदाता पिता  और माता के समान श्रद्धेय
तथा देवताओं  के समान पूजनीय है |  एक  रक्षक और मार्गदर्शक  के
रूप में वह् अन्तिम साधन है क्योंकि महादेव शिव भी यदि क्रुद्ध हो जाये
तो एक गुरु उनके क्रोध से रक्षा करने  में सक्षम है |  परन्तु यदि स्वयं
गुरु ही क्रोधित हो जाये तो फिर कोई भी रक्षक नहीं हो सकता है |

(भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा का सर्वत्र बखान किया गया है |\
उपर्युक्त  सुभाषित भी इसी श्रेणी  का है | तुलसीदास जी ने भी कहा है -
"राखइ गुरु जों कोप विधाता | गुरु विरोध नहिं कोउ जग त्राता || " )

Guruh pitaa gururmaataa gururdevo gururgatih .
Shiverushte gurustraataa Gurau rushte na kashchana.

Guru = A teacher (In Hindu culture a Guru is revered for his
self less service to the society for imparting knowledge and
guiding from commoners to kings without any discrimination).
Pitaa = father.   Gururmaataa =guruh + maataa.   Maata= mother.
Gururdevo - guruh +devo.    Devo = God.     Gururgatih =
guruh +gatih.      Gatih = last resort, ultimate refuse    Shiverushte =
shive +rushte.    Shive = reference to God Shiva.    Rushte = angry.  
Gurustraataa =  guruh +traataa.      Traataa = protector.   Na = not.
Kashchana = somebody.     Na kashchana =  nobody.

i.e.      A Teacher is  revered and worshiped like one's own parents
and Gods and acts as a last resort for guiding and protecting his
pupils.  If God Shiva becomes angry a Guru is there to protect from
his wrath, but if a Guru himself becomes angry, there is nobody to
protect from his wrath.


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