दानेन भोगी भवति मेधावी वृद्धसेवया |
अहिंसया च दीर्घायुरिति प्राहुर्मनीषिणः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - विद्वान तथा सज्जन व्यक्तियों का कहना है कि दान
करना ही धन संपत्ति का भोग करने का सर्वोत्तम रूप है तथा
वरिष्ठ विद्वानों की सेवा के द्वारा व्यक्ति बुद्धिमान् हो जाता है
और अहिंसा का अनुपालन करने दीर्घायु प्राप्त करता हैं |
( शास्त्रों मे धन संपत्ति की तीन गतियां दान, भोग और नाश कही
गयी हैं और इन में दान को ही सर्वोत्तम कहा गया है | इसी प्रकार
सत्संगति से व्यक्ति गुणवान और बुद्धिमान् हो जाता है तथा हिंसा
न कर और शाकाहारी रह कर व्यक्ति दीर्घायु और स्वस्थ रहता है |
इन्हीं सर्वमान्य तथ्यों को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है )
Daanena bhogee bhavati medhavee vruddhasevayaa,
Ahimsayaa cha deerghaayuriti praahurrmaneeshinah.
Daanena = by giving away wealth as charitry, Bhogee =
enjoyer of wealth. Bhavati = becomes. Medhaavee =
intelligent. Vruddhasevayaa = by serving aged learned
persons. Ahimsayaa = by observing nonviolence. Cha =
and. Deerghaayuriti = deergha + aayuh + iti . Deergha =
long. Ayuh = life. Iti = that. Praahurmaneeshinah =
Praahuh + maneeshinah. Praahuh = proclaimeed..
Maneeshinah = noble and intelligent persons.
i.e. Noble persons have proclaimed that giving away wealth
as charity is the best form of its use, and a person becomes
intelligent and learned if he serves virtuous and noble aged
persons, and becomes long lived if he observes non-violence.
(According to Hindu Religion there are three ways in which
wealth is consumed, namely charity, conspicuous consumption
and for destructive purposes, Similarly serving noble and aged
persons and observing non-violence also makes a person long
lived and intelligent. These well established facts have been
nicely incorporated in the above Subhashita.)
अहिंसया च दीर्घायुरिति प्राहुर्मनीषिणः || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - विद्वान तथा सज्जन व्यक्तियों का कहना है कि दान
करना ही धन संपत्ति का भोग करने का सर्वोत्तम रूप है तथा
वरिष्ठ विद्वानों की सेवा के द्वारा व्यक्ति बुद्धिमान् हो जाता है
और अहिंसा का अनुपालन करने दीर्घायु प्राप्त करता हैं |
( शास्त्रों मे धन संपत्ति की तीन गतियां दान, भोग और नाश कही
गयी हैं और इन में दान को ही सर्वोत्तम कहा गया है | इसी प्रकार
सत्संगति से व्यक्ति गुणवान और बुद्धिमान् हो जाता है तथा हिंसा
न कर और शाकाहारी रह कर व्यक्ति दीर्घायु और स्वस्थ रहता है |
इन्हीं सर्वमान्य तथ्यों को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है )
Daanena bhogee bhavati medhavee vruddhasevayaa,
Ahimsayaa cha deerghaayuriti praahurrmaneeshinah.
Daanena = by giving away wealth as charitry, Bhogee =
enjoyer of wealth. Bhavati = becomes. Medhaavee =
intelligent. Vruddhasevayaa = by serving aged learned
persons. Ahimsayaa = by observing nonviolence. Cha =
and. Deerghaayuriti = deergha + aayuh + iti . Deergha =
long. Ayuh = life. Iti = that. Praahurmaneeshinah =
Praahuh + maneeshinah. Praahuh = proclaimeed..
Maneeshinah = noble and intelligent persons.
i.e. Noble persons have proclaimed that giving away wealth
as charity is the best form of its use, and a person becomes
intelligent and learned if he serves virtuous and noble aged
persons, and becomes long lived if he observes non-violence.
(According to Hindu Religion there are three ways in which
wealth is consumed, namely charity, conspicuous consumption
and for destructive purposes, Similarly serving noble and aged
persons and observing non-violence also makes a person long
lived and intelligent. These well established facts have been
nicely incorporated in the above Subhashita.)
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन
ReplyDeleteदानेन पाणिर्न तु कंकणेन I
विभाति कायः करुणापराणां
परोपकारैर्न तु चन्दनेन II
प्रत्युत्तर के रूप मे इस सुन्दर सुभाषित को पोस्ट करने के लिये धन्यवाद |
Delete- मोहन चन्द्र जोशी