Friday, 29 September 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


छिन्नोSपि  रोहति तरुश्चन्द्रः क्षीणोSपि  वर्धते लोके  |
इति  विमृशन्तः  सन्तः  संतप्यन्ते  न  लोकेSस्मिन्  ||
                                                - भर्तृहरि (नीतिशतक)

भावार्थ -    एक पेड के तने और डालियों को काटने पर भी वे पुनः 
उग कर बडा हो जाता है | उसी प्रकार चन्द्रमा भी कृष्णपक्ष में क्षीण
(आकार में छोटा) होता जाता है परन्तु  शुक्ल पक्ष में पुनः बडा होता
 जाता है  |  इस तथ्य से परिचित होने के कारण कि इस संसार में
नाश और वृद्धि  (सुख और दुःख भी ) क्रमशः आते जाते हैं ,संत और
सज्जन व्यक्ति विपत्ति के समय पर भी दुःखी नहीं होते हैं |

Chhinnopi rohati tarushchandrah  ksheenopi  vardhate loke.
Iti  vimrushantah  santah smtapyante  na  lokesmin.

Chinnopi = chinnno + api.     Chinno = cut off.    Api = even.
Rohati = grow, increases.    Tarushchandrah = taruh + chandrah.
Taruh = a tree.    Chandrah = the Moon.   Ksheenopi = ksheeno+
api.    Ksheeno = diminished  in size., waning (of the moon )
Vardhate = increases in size, sprouts ( in the case of a tree), waxes
(in the case of the Moon).     Loke =in this world.    Iti = this. 
Vimrushantah = perceive.   Santah= a noble and  ascetic person.   
Santapyate = suffer pain.    Na = not.    Lokesmin = loke+asmin.   
Asmin = in this.

i.e.     The stem and branches of a tree on being chopped off, its
remnants  sprout and the tree grows again .  Likewise, the Moon
during its waning period gets reduces in size and during its waxing
period again  grows in size and acquires its original shape.  Being
well aware of the fact that in this World periods of decay and growth
(as also miseries and happiness ) follow each other, noble ascetic
persons do not grieve even while facing hardships.
 





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