किं तेन जातु जातेन मातृयौवनहारिणा |
आरोहति न यः स्वस्य वंशस्याग्रे ध्वजो यथा ||
= सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)
भावार्थ - केवल अपनी माता के यौवन और सौन्दर्य को
नष्ट करने वाली ऐसी संतान के जन्म लेने का क्या लाभ
जो अपने कुल (वंश ) की शोभा(परम्परा) को उसी प्रकार नहीं
बढाता है जैसा कि एक ध्वजा (झण्डा) एक लम्बे बांस के सिरे
पर फहरा कर सुशोभित होती है ?
(इस सुभाषित में 'वंश' शब्द दो विभिन्न अर्थों में (१) किसी
परिवार की परम्परा तथा (२) एक बांस के लम्बे डण्डे के रूप मे
लिया गया है | एक गुणी संतान अपने वंश की शोभा उसी प्रकार
बढाती है जैसा कि एक झण्डा बांस के सिरे पर फहरा कर सुशोभित
होता है | इस तथ्य को एक सुन्दर उपमा के रूप में प्रयुक्त किया
गया है |)
Kim tenu jaata jaatena maatruyauvanahaarinaa.
Aarohati na yah svasya vmshaasyaagre dhvajo yathaa.
Kim = what ? Tena = his Jaatena = being born.
Maatru = mother. Yauvan = youth . Haarinaa =
destroyer. Aarohati =rises up, ascends. Na = not.
Yah = who. Svasya = one's own. Vmshasyaagre=
Vmshasya+ agre. Vmshasya = of the family dynasty .
a bamboo pole's Agre = top end., foremost. Dhvajo =
a flag. Yathaa = for instance, like a.
i.e. What purpose is served by the birth of a child as a
destroyer of the youth and beauty of his/her mother, if
he/she does not increase the name and fame of his/her
dynasty, just like a flag hoisted and fluttering atop a long
bamboo pole ?
(In this Subhashita the word 'Vmsha' has two meanings ,
namely (1) a family dynasty, and (2) a long bamboo pole,
which has been used as a simile for the family dynasty.)
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