Thursday, 16 November 2017

आ'ज का सुभाषित / Today's Subhashita.



यावद्गुरुपदाम्भोजेSनुरागो  याति  नोदयम्  |
क्व  नाम तावत्सद्विद्यापद्मिनी  प्रैति फुल्लताम्  ||
                      - सुभाषित रत्नाकर (अच्युतरायजी)
भावार्थ  -    जब  तक किसी विद्यार्थी  का अपने गुरु के चरणकमलों
के प्रति अनुराग नहीं होता है तब तक सद्विद्या रूपी कमलिनी कैसे
पूर्ण रूप से खिल सकती है ?

(प्रस्तुत सुभाषित में अलङ्कारिक रूप से एक विद्यार्थी द्वारा अपने गुरु
के प्रति पूर्ण समर्पण और श्रद्धा की  आवश्यकता पर बल दिया गया है |
तभी  एक  शिष्य अपने गुरु से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है | )

Yaavad-gurupadaambhojenuraago  yaati  nodayam .
kva naama taavat-sadvidyaa-padminee  praiti  phullataam.

Yaavadgurupadaambhojenuraago = Yaavat + gu+pada+ambhojae +
anuraago.    Yaavat = until.    Guru = a teacher.      Pada = feet.
Ambhoja = lotus flower.   Anuraago = affection,   Yaati = becomes.
Nodayam = na+ udayam.    Na = not.   Udayam = created, arises.
Kva = where ? ,   whither ?    Naam = namely, what ?    Taavat =
 until such time.   Sadvidyaa =  true knowledge.  Padminee = lotus.
Praiti  = arrives, becomes.    Phullataam = full bloom.


i.e.  Until  such time a student does not develop  complete devotion and
obedience at the lotus like feet of his Guru, how can  he can acquire real
knowledge  like a lotus flower in full bloom .

(In the above Subhashita the importance of devotion and obedience by
a student towards his teacher has been emphasised in a figurative manner.)

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