बन्धनस्योSपि मातङ्गः सहस्रभरणक्षमः |
अपि स्वच्छन्द्चारी श्वा स्वोदरेणाSपि दुःखितः ||
-सुभाषित रत्नाकर
भावार्थ- एक पालतू हाथी बंधा हुआ होने पर भी एक हजार
लोगों का परोक्ष रूप से भरणपोषण करने में सक्षम होता है ,
परन्तु एक उन्मुक्त विचरण करने वाला कुत्ता स्वयं अपना
ही पेट न भर सकने के कारण दुःखी रहता है |
(प्रस्तुत सुभाषित 'संकीर्णान्योक्तयः ' शीर्षक के अन्तर्गत
संकलित है | लाक्षणिक रूप से इस का अर्थ यह है कि एक महान
व्यक्ति चाहे वह परतन्त्रता का जीवन व्यतीत कर रहा हो परोक्ष
रूप से अनेक और व्यक्तियों (उसके सेवकों, रक्षकों आदि) का भी
भरण पोषण करता है |इस के विपरीत एक साधारण व्यक्ति चाहे
वह स्वतन्त्र जीवन व्यतीत कर रहा हो अपना ही भरण पोषण
नहीं कर सकता है | एक कहावत भी है कि - मरा हुआ हाथी भी सवा
लाख रुपये का होता है |
Bandhanasyopi maatangah sahasra-bharana-kshamah.
Api svacchandachaaree shvaa svodarenaapi duhkhitah.
Bandhanasyopi = bandhansyao + api. Bandhanasyo =
under bondage. Api = even. Matangah = an elephant.
Sahasra = one thousand. Bharana = sustenance, support
Kshamah = capability, power. Svacchandcaaree =
independent. Shva = a dog. Svodarenaapi= svodarena +
api. Svodarena = one's own stomach (for filling of)
Duhkhitah = miserable , unhappy.
i.e. An elephant even under bondage provides indirectly
sustenance to thousands of people, whereas an independent
stray dog leads a miserable life by not being able even to
sustain himself properly.
(This Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory) . The idea
behind it is that great men even under bondage indirectly
provide livelihood to numerous other persons involved in
their service and protection, whereas ordinary persons even
if they are independent can not feed themselves properly and
lead a miserable life.)
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