त्यक्तापि निजप्राणान्परहितविघ्नं खलः करोत्येव |
कवले पतिता सद्यो वमयति मक्षिकाSन्नभोक्तारम् ||
- सुभाषित रत्नाकर
भावार्थ - नीच और दुष्ट व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के हितों (कार्यों)
में विघ्न (रुकावट या हानि) करने के लिये अपने प्राणों का भी त्याग
वैसे ही कर देते हैं जैसा कि एक मक्खी एक भोजन करते हुए व्यक्ति
के ग्रास में गिर कर उसके द्वारा भोजन का वमन करने के कारण
स्वयं भी नष्ट हो जाती है
(यह सुभाषित 'दुर्जन निन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसी
विचार को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक अन्य उदाहरण के द्वारा
इस प्रकार व्यक्त किया है - 'पर अकाज लगि तनु परिहरहीं | जिमि हिम
उपल कृषी दलि गरहीं || - अर्थात दुष्ट व्यक्ति ओलों की तरह फसल के
ऊपर बरस कर उसे नष्ट कर देते हैं और स्वयं भी गल कर नष्ट होजाते हैं )
Tyaktaapi nija-praanaan-para-hita-vighnam khalah karotyeva.
Kavale patitaa sadyo vamayati makshikaanna bhoktaaram.
Tyaktaapi = tyakta + api. Tyakta = abandoned. Api= even.
Nija = one's own. Praanaan = breath of life. Para = others.
Hita = interests. Vighnam = hinderance, impedement. Khalah =
a wicked person. Karotyeva = karoti + eva. Karoti = dose.
Aiva = thus. Kavale = a morsel of food. Patitaa = fallen into.
Sadyo = instantly. Vamayati = vomits . Makshikanabhoktaaram.
Makshikaa +anna + bhoktaaram. Makshikaa = a fly. Anna =food.
Bhoktaaram = eater of food.
i.e. Mean and wicked persons even do not hesitate to end their life
for putting impediments in other persons' activities just like the fly
falling on the morsels of food being consumed by a person, who
immediately vomits the food along with the fly.
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