शक्तिं करोति संचारे शीतोष्णे मर्षयत्यपि |
दीपयत्युदरे वह्निं दारिद्र्यं परमौषधम् ||
- सुभाषित रत्नाकर
भावार्थ - दरिद्रता यद्यपि अत्यन्त कष्टकर होती है फिर भी वह् दरिद्र
व्यक्ति के शरीर में शीत तथा गरमी को सहने की शक्ति प्रदान करती है
और उसके उदर (पेट) में भूख रूपी अग्नि जाग्रत कर उसे स्वस्थ रखती है |
सचमुच दरिद्रता एक सर्वोत्तमऔषधि है |
(प्रस्तुत सुभाषित व्याज स्तुति (प्रशंसा की आड में आलोचना करने का)
एक सुन्दर उदाहरण है | संपन्न व्यक्तियों में अत्यधिक सुविधायें
उपलब्ध रहने के कारण शीत और गरमी सहने की शक्ति नहीं होती है और
वे अजीर्ण आदि अनेक पेट से संबन्धित रोगों से पीडित रहते हैं , जिस के
लिये आयुर्वेद में कम और संतुलित भोजन करने को सर्वोत्तम औषधि
कहा गया है | परिस्थितिवश एक दरिद्र व्यक्ति को यह भोगना ही पडता है |)
Shaktim karoti smchaare sheetoshne marshayatyapi .
Deepayatyudare vahnim daaridryam paramaushadham,
shaktim = strength, energy. Karoti = does, Smchaare =
transmits,communicates. Sheetoshne = cold and hot.
Marshayatyapi = marshayati + api. Marshayati = suffers.
Api = even. Deepayatyudare = deepayati + udare.
Deepayati = ignites, sets on fire. Udare = in the stomach.
Daaridryam = poverty. Paramaushadham = param +
aushadham. Param = absolute, highest. Aushadham =
mdiicine.
i.e. Although poverty causes much hardships, it gives to
poor people the strength and energy to bear cold and heat
equally, and the fire of hunger in their belly keeps them fit.
Really, poverty is a supreme medicine.
(The above Subhashita is a fine example of censuring in the
guise of praising. Affluent and rich persons lack in the
capacity of bearing cold and hot climate and due to their food
habits also suffer from various diseases related to stomach and
digestion. Fasting is termed as best medicine for such diseases,
which the poor people are doomed to face throughout their life. )
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