Monday, 29 January 2018

आज का सुभाषितToday's Subhashita.


न  पश्यामो  मुखे  दंष्ट्रां  न पाशं  वा  कराञ्चले  |
उत्तमर्णमवेक्षैव  तथाSप्युद्विजते   जनः         ||
               -  सुभाषित रत्नाकर (कलिविडम्बनम्)

भावार्थ -    एक ऋणदाता  के  मुंह में  न तो डरावने दांत होते हैं और
न  ही  हाथ में कोई पाश ( बांध कर  ले जाने के लिये रस्सी या जंजीर)
होती है , फिर भी उसे देख  कर  वे लोग जिन्होंने  उस से ऋण लिया
हुआ हो  अत्यन्त भयभीत हो जाते हैं |

(इस सुभाषित में एक ऋण लेने वाले की अपने ऋण दाता को देखने के
बाद की मनोदशा का सुन्दर वर्णन किया गया है | )

Na pashyamo mukhe dmshtraam  na paasham  vaa  karanchale.
Uttamarnamavekshaiva tathaapyudvijate janah.

Na = not.  Pashyaamo =by seeing.   Mukhe = face.   Dmshtraam=
large teeth.      Paasham =  a noose       Vaa= or        Karaanchale=
on the hand.    Uttamarnamavekhsiava = Uttamarnam +avekshya+
eva.    Uttamarna = a creditor (a person who has lent money to
someone.)        Aveekshya =visited by.         Aiva = thus , really.
Tathaapyudvijate = taathaapi + ud vijate.     Tathaapi = even then.
Udvijate = tremble, become agitated,    Janah = people.

i.e.     A creditor  has neither fierce teeth on his mouth nor a noose
or a chain held by him on his hand,  even then people (the debtors)
tremble and get agitated on seeing him.

(In this Subhashita the mentality of a debtor towards his creditor on
being confronted by the creditor has been nicely described.)






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