अन्तःकटुरपि लघुरपि सद्वृत्तं यः पुमान्न संत्यजति |
स भवति सद्यो वन्द्यः सर्षप इव सर्वलोकस्य ||
-सुभाषित रत्नाकर
भावार्थ - एक व्यक्ति जो विपरीत परिस्थिति में भी अपना
सद्व्यवहार नहीं त्यागता है वह तुरन्त समाज में उसी प्रकार
वन्दनीय हो जाता है जिस प्रकार सरसों के छोटे और गोलमटोल
दाने यद्यपि अन्दर से स्वाद में कडुवे होते हैं फिर भी अपने गुणों
के कारण ही सर्वत्र वन्दनीय होता है |
(सरसों का भारतीय जीवन पद्धति में बडा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है|
यद्यपि स्वाद में वह कदुवा है पर उससे जो तैल निकाला जाता है
वह औषधीय गुणों से युक्त है और पूजा पद्धति में भी उसका प्रमुख
स्थान है | इस सुभाषित का निहितार्थ यही है कि एक साधारण व्यक्ति
भी समाज में अपने गुणों के कारण ही सम्मानित होता है न कि बाहरी
रूप से | )
Antahkaturapi laghurapi sadvruttam yah pumaana smtyajati.
Sa bhavati sadyo vandyah sarshapa iva sarvalokasya.
Antaahkaturapi = Antah+ katuh + api. Antah = inside
katu = bitter in taste. Api = even. Laghurapi = laghuh +api.
Laghu = very small. Sadvruttam = good conduct, well rounded.
Yah = who. Pumaana = pumaaan + na. Pumaan = a person.
Na = not. Tyajati =quits. Sa =he. Bhavati =becomes. Sadyo =
instatly. Vandyah = praiseworthy. Sarshapa = mustard seed.
Iva =like the (comparison). Sarvalokasya = of every body.
i.e. A person who does not quit his virtuous and righteous
behaviour even on the face of adverse circumstances, is revered
by the people just like the mustard seed, although it is very small
in size and bitter in taste.
(Mustard seed has a prominent place in the lifestyle of people in
India due to its nutritional and medicinal qualities. It has also a
prominent place in religious rituals in the society. By using it as
a simile for noble and righteous persons the author has stresses
that a person is revered in society by his inherent qualities and
not his outer appearance. )
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