स्थिरा शैली गुणवतां खलबुध्या न बाधते |
रत्नदीपस्य हि शिखा वात्ययाSपि न नाश्यते ||
- सुभाषित रत्नाकर (कुवलयानन्द)
भावार्थ - गुणी और बुद्धिमान व्यक्तियों की कार्यशैली चिरस्थायी
होती है तथा उस पर नीच और दुष्ट व्यक्तियों के द्वारा jजानबूझ कर
हस्तक्षेप करने पर भी कोई बाधा उसी प्रकार उत्पन्न नहीं होती है जैसे
कि एक रत्नदीप (वर्तमान संदर्भ में विद्युत बल्ब) की ज्योति (प्रकाश)
तेज हवा के झोंकों से भी नहीं नष्ट होती है |
(यह सुभाषित 'विद्वत्प्रसंशा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसका
तात्पर्य यह है विद्वान व्यक्ति दुष्ट व्यक्तियों द्वारा उनके कार्यों में
विघ्न उत्पन्न करने पर भी अपने कार्यों को कुशलता पूर्वक संपन्न कर
लेते हैं | )
Shhiraa shailee gunavataam khalabudhyaa na baadhate.
Ratnadeepasya hi shikha vaatyayaapi na naashyate.
Sthiraa = steady, long lasting. Shailee = technique, way of
doing a task. Gunavataam = virtuous persons. Khala =
mean and wicked person. Budhyaa = purposely; Na =not.
Baadhate = disturbs, prevents. Ratnadeepasya =of a lamp
in which jewels give out the light. Hi =surely. Shikhaa=
flame. Vaatyayaa = by a strong gust of wind. Api = even.
Na = not. Naashyate = extinguished, destroyed.
i.e. The way of doing a task by wise and virtuous persons is
very steady and long lasting and remains undisturbed by the
impediments purposely created by mean and wicked persons,
just like a lamp in which jewels give out light ( in modern
parlance an electric bulb) can not get extinguished even in a
strong gust of wind.
(This Subhashita is classified under the category 'In the praise
of learned men' . )
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