माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी |
अरण्यं तेन गन्तव्यं यथाSरण्यं तथा गृहम् ||
- चाणक्य नीति
भावार्थ - जिस व्यक्ति को अपने घर में अपनी माता का
संरक्षण प्राप्त न हो तथा उसकी पत्नी कटु वचन कहने वाली
हो, तो ऐसे व्यक्ति के लिये यही उचित है कि वह् वनवासी हो
जाय क्यों कि उसके लिये जैसा वन कष्टकर है वैसा ही अपने
घर में रहना |
(किसी परिवार में वरिष्ट व्याक्ति न होने तथा पत्नी कर्कशा
होने से गृहस्थ जीवन कष्ट पूर्ण और दुःखमय हो जाता है |
इसी भावना को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है |)
Maata yasya gruhe naasti bhaaryaa chapriyavaadinee.
Aranyam tena gantavyam yathaaranyam tatha gruham.
Maata = mother. Yasya = whose. Gruhe = home.
Naasti = non-existent. Bhaaryaa = wife. Cha = and.
Apriyavaadinee =speaking harshly. Aranyam = a forest.
Tena = he. Gantavyam = go. Yathaa = for instance.
Tatha = so, thus.
i.e. A person who has no mother to look after him and his
wife is very rude and foul-mouthed , he should better reside
in a forest, because his home is also just like a forest
full of hardships.
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