अनुकुरुतः खलसुजनामग्रिमपाश्चात्यभागयोः सूच्याः |
विदधातिरन्ध्रमेको गुणवानन्यस्तु पिदधाति ||
- सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )
भावार्थ - दुष्ट व्यक्तियों के आगे तथा पीछे रह कर सज्जन
व्यक्ति अपने गुणों (सुशीलता, दयालुता आदि ) के द्वारा दुष्ट
व्यक्तियों के द्वारा किये गये बुरे कर्मों के प्रभाव को उसी प्रकार
दूर कर देते हैं जैसा कि सुई में पिरोये जाने के बाद तागा सुई के
द्वारा बनाये गये छिद्रों में बार बार प्रविष्ट हो कर किसी वस्त्र
के फटे हुए भाग का जीर्णोद्धार (मरम्मत) कर देता है |
(प्रस्तुत सुभाषित में दुष्ट और सज्जन व्यक्तियों की स्वभावगत
विशेषताओं को तागे और सुई की उपमा के द्वारा व्यक्त किया
गया है |)
Anukurutah khalasujanaamagrimapaashchaatyabhaagayoh
soochyaah.
Vidadhaatirandhrameko gunavaananyastu pidadhaati.
Anukurutah = imitating. Khala = a wicked person. Sujanaam=
noble person Agrim=front. Pashchaatya = back. Bhaagayoh =
parts, Soochyaah = of a needle. Vidadhaati = renders. produces.
Randhram = a hole, a slit. Eko = one. Gunavaan = virtuous,
with the thread. Anyastu = anyah + tu. Anyah = to the other
i.e. the hole or a slit. Tu = but, and. Pidadhaati = shuts.
i.e. By remaining in front and the back of wicked persons, noble
persons nullify the effect of the misdeeds of wicked persons just like
the thread tucked to a needle repairs the hole or a slit in a garment.
(By the use of a simile of the thread and a needle, the author of this
Subhashita has outlined the nature of noble and wicked persons.)
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