Sunday, 1 April 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


अञ्जलिस्थानि पुष्पाणि वासयन्ति करद्वयम्  |
अहो सुमनसां  प्रीतिर्वामदक्षिणयोः  समा          ||
                सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ =   हाथों की  अञ्जलि मे स्थित पुष्प दोनों ही हाथों को
अपनी सुगन्ध से भर देते हैं |  अहो  !  उसी प्रकार सज्जन और
सहृदय व्यक्ति भी दायें या बायें का भेद भाव न कर सब से एक
समान प्रेम करते हैं |

(इस सुभाषित में  संत जनों के प्रशंसा एक उपमा के द्वारा की
गई है | इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण में
इस दोहे के रूप में प्रस्तुत किया है :-
            बन्दउं  संत  समान  चित  हित  अनहित  नहिं  कोइ |
            अञ्जलि  गत सुभ सुमन जिमि सम सुगन्ध कर दोइ ||)

Anjalisthaani pushpaani vaasayanti karadvyam.
Aho sumanasaam  preetirvaamadakshinayoh samaa.

Anjalisthaani = situated inside the cavity produced by
joining the palms of both the hands.   Pushpaani =flowers.
Vaasayanti =make fragrant.   Karadvyam =both the hands .
Aho = Oh !    Suumanasaam = noble and virtuous persons.
Preetirvaamadakshino= preetih + vaama+ dakshinayoh .
Preetih =kindness .   Vaam = left side.  dakshinayoh = right
side.   Samaa = equal, the same.

i.e.   Flowers held inside the cavity by joining palms of both
hands make both the palms fragrant. Aah !  in the same manner
noble and virtuous men also show their kindness to every body
in the society without any discrimination.

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