जानीयात्प्रेषणे भृत्यान्बान्धवान् व्यसनागमे |
मित्रं चापत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ||
- चाणक्य नीति ( १/११ )
भावार्थ - विपत्ति आने पर ही सेवकों तथा बन्धु बान्धवों तथा
मित्रों के द्वारा सेवा और सहायता करने के प्रति वे कितने प्रतिबद्ध
हैं यह ज्ञात हो जाता है | और धन संपत्ति नष्ट हो जाने पर अपनी
पत्नी की प्रतिबद्धता भी ज्ञात हो जाती है |
(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इस प्रकार व्यक्त
किया है :-
' धीरज धर्म मित्र अरु नारी | आपतकाल परखिये चारी || '
Jaaneeyatpreshane bhrutyaanbaandhavaan vyasanaagame.
Mitram chaapattikaaleshu bhaaryaam cha vibhavakshaye.
Jaaneeyat +preshane. Jaaneeyaat = is known. Preshane =
rendering a service, commitment Bhrutyaan = servants.
Baandhavaan=close relatives. Vyasanaagame = approach of
a calamity. Aapattikaaleshu = emergency, hard times.
Bhaaryaam = wife's Vibhavakshaye = loss of wealth ,
i.e. Only during the time of facing a calamity,the commitment
of a servant, close relatives and a friend for rendering service and
help can be tested and that of one's wife when all wealth is lost.
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