Sunday, 27 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


दुर्जनस्य  च  सर्पस्य  वरं  सर्पो  न  दुर्जनः  |
सर्पो  दंशति  काले  तु  दुर्जनस्तु  पदे  पदे   ||
                               - चाणक्य नीति (३/४ )

भावार्थ -   एक दुष्ट  व्यक्ति  और एक  सर्प (सांप)  की
संगति के बीच में यदि चुनाव करना हो तो एक  सांप को
चुनना अच्छा है न कि एक दुष्ट व्यक्ति को, क्यों कि सांप
तो आवश्यकता पडने पर केवल अपने बचाव के लिये ही
डसता है जब कि एक दुष्ट व्यक्ति  तो  अकारण ही कदम
कदम पर हानि पहुंचाता है |

Durjanasya  cha  sarpasya  varam  sarpo na durjanh.
Sarpo  damshati  kaale  tu  durjanasya  pade  pade .

Durjanasya =a wicked person's.       cha = and.
Sarpasya = a snake's    Varam = preferable.  Sarpo =
a snake.     Na =not.   Durjanah = a wicked person.
Dmshati =  bites.    Kale = when needed.    Tu=  but.
Pade pade = at every step.

i.e.    If one has to choose between  a wicked person and
a snake as a companion, it is preferable to choose a snake
rather than a wicked person, because  while the snake will
bite only in case of need  to protect itself , a wicked person
has the tendency of causing harm without any reason  at
every step.

2 comments:

  1. आपने बहुत श्रम किया है, आभार

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