एतदर्थे कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति सङ्ग्रहम् |
आदिमध्यावसानेषु न ते गच्छन्ति विक्रियाम् ||
- चाणक्य नीति (३/५ )
भावार्थ - प्रसिद्ध और उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति तथा
विभिन्न देशों के राजा (शासक) इस लिये धन का सङ्ग्रह
करते हैं कि उनके द्वारा किसी भी कार्य संपन्न करने के
प्रारम्भ में, बीच में तथा समाप्ति से पहले यदि किसी भी
अनपेक्षित कारण से उस कार्य में बाधा पहुंचती हो या उसके
असफल होने की आशङ्का हो तो उसे अतिरिक्त धन व्यय
कर दूर किया जा सके |
(वर्तमान प्रबन्धन प्रणाली में किसी आकस्मिक व्यय के लिये
जिस प्रकार अलग से प्रावधान किया जाता है ताकि कोई योजना
धन के अभाव में असफल न हो ,उसी का वर्णन इस सुभाषित में
भी लाक्षणिक रूप से किया गया है | )
Etadarthe kuleenaanaam nrupaah kurvanti sangraham.
Aadimadhyaavasaaneshu na tey gacchanti vikriyaam.
Etadarthe = for this purpose. Kuleenaanaam = persons
born in a noble and illustrious family. Nrupaah = kings.
Kurvanti = do. Sanghram = collection. Aadi+ madhya+
avasaneh+ tu. Adi = beginning. Madhya = the middle.
Avasaaneh = the end. Tu =and, but. Na =not . Tey =
they. Gacchanti = undergo. Vikriyaam = undesirable
and unexpected deterioration, failure.
i.e. Persons born in noble and illustrious families and Kings
collect and store wealth only for the purpose of meeting any
contingency faced during the initial ,middle or concluding stage
of a project due to some unforeseen and undesirable circumstances
that may otherwise result in the failure of the project.
(The above Subhashita deals in its own way the modern concept
of Management for making provision for a Contingency Fund
while implementing any project.)
आदरणीय,
ReplyDeleteइस श्लोक का भावार्थ दोषपूर्ण है।