मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् |
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ||
- चाणक्य नीति ( ३/२१)
भावार्थ - जिस प्रदेश में मूर्ख व्यक्तियों को पूजा नहीं जाता ( वे उच्च
पदों पर नियुक्त नहीं किये जाते हैं ) , खाद्द्यान्नों का भण्डारण और
संरक्षण भली प्रकार किया जाता है , विवाहित स्त्री- पुरुषों में आपस में
कलह (झगडा) नहीं होता है ,वहां धन संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी
स्वतः निवास करने के लिये आ जाती है ( वह प्रदेश समृद्ध होता है ) |
(इस सुभाषित में लाक्षाणिक रूप से किसी राज्य की समृद्धि के प्रमुख
कारक सुयोग्य शासन व्यवस्था , सामाजिक सौहार्द्र तथा खाद्द्यान्नों
का संरक्षण और भण्डारण बताये गये हैं, जिस का वर्तमान शासन
व्यवस्था में अभाव ही दिखाई देता है |)
Moorkhaa yatra na poojyate dhaanyam yatra susanchitam.
Dampatye kalaho naasti tatra shreeh svayamaagataa.
Moorkhaa = foolish persons. Yatra= where. Na = not.
Poojyante = worshipped, adored. Dhanyam = foodgrains.
Susanchitam = properly stored. Daampatye = matrimonial
relationship. Kalaho = quarreling. Naasti = non- existent.
Tatra - there, Shreeh = goddess of wealth and prosperity.
Svayam + aagataa. Svyam = herself Aagataa = comes.
i.e. In a country where foolish persons are not adored (are not
given prominent position in the administration), food grains are
stocked and preserved properly, and there is no quarrelling among
married couples, Lakshmi, the Goddess of wealth and prosperity,
on her own arrives to reside there.
(In this Subhashita three main requisites for the prosperity of a
country have been given , namely proper and strict governance.
proper maintenance of stocks of food-grains, and cordial relations
among members of the society. Alas ! presently we are lacking
in all these areas. )
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