Monday, 25 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नास्ति  कामसमो  व्याधिर्नास्ति  मोहसमो   रिपुः  |
नास्ति  कोपसमो   वह्निर्नास्ति  ज्ञानात्परं सुखम् ||
                                        - चाणक्य नीति ( ५/१२)

भावार्थ - अदम्य कामवासना के समान (हानिकार) और कोई व्याधि
नहीं होती है तथा मोह ( किसी वस्तु या व्यक्ति को प्राप्त करने की
अदम्य इच्छा ) के समान और कोई शत्रु नहीं होता है |  क्रोध के समान 
जला देने वाली और हानिकर और कोई अन्य अग्नि नहीं होती है तथा 
ज्ञानप्राप्ति के सुख से बढ कर अन्य कोई सुख नहीं होता है |

(मानव स्वभाव को प्रभावित करने वाली काम, क्रोध तथा मोह की
प्रवृत्तियों की तुलना इस सुभाषित में क्रमशः एक व्याधि,अग्नि और
शत्रु से की गयी है  तथा यह प्रतिपादित किया गया है कि ये प्रवृत्तियां
और भी अधिक घातक हैं |)

Naasti kaama-samo vyaadhirnaasti moha-samo ripuh .
Naasti kopa-samo  vahnirnaasti gyaanaat-param sukham.

Naasti =non-existence.    Kaama = sexual urge.    Samo=
equal to.  Vyaadhirnaasti =vyaadhih +naasti,   Vyaadhih=
disease, sickness.  Moha =infatuation, delusion.  Ripuh=
enemy.    Kope = anger, rage.   Vahnih +naasti,   Vahnih=
fire.    Gyaanaat +param.   Gyaanaat =higher  knowledge.
Param = absolute, better than.    Sukham = happiness.

i.e.    There is no other harmful disease equal to unbridled
sexual urge, and no enemy equal to infatuation and delusion.
There is no other fire equal to the uncontrolled anger in a
person and no happiness is better than the happiness acquired
through higher knowledge.

(The three tendencies of human mind namely sexual urge, anger
and infatuation have been described in this Subhashita as more
harmful than  a disease, a  fire and an enemy respectively.)

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