अन्तःसारविहीनानामुपदेशो न जायते |
मलयाचलसंसर्गान्न वेणुश्चन्दनायते ||
- चाणक्य नीति (१०/८ )
भावार्थ - आन्तरिक (जन्मजात) गुणों से रहित व्यक्तियों
को उपदेश देने का कोई अच्छा परिणाम नहीं होता है | देखो न ,
मलय पर्वत में चन्दन के वृक्षों के साथ उगे हुए बांस के वृक्ष
चन्दन के वृक्षों के समान सुगन्धित नहीं हो जाते हैं |
(दक्षिण भारत में मलय पर्वत अपने सुगन्धित चन्दन के वृक्षों
के लिये प्रसिद्ध है | बांस के वृक्ष भी वहां उगते हैं परन्तु उनमें
सुगन्ध नहीं होती है क्यों कि उनमें यह जन्मजात गुण नहीं होता
है और मलयाचल तथा चन्दन वृक्ष के संसर्ग का कोई लाभ उन्हें
नहीं होता है | इसी प्रकार आन्तरिक गुणों से रहित व्यक्तियों को
भी विद्वान् व्यक्तियों के संसर्ग या उनके उपदेशों से कोई लाभ
नहीं होता है |)
Antahsaara-viheenaanaam-upadesho na jaayate.
Malayaachalasmsargaanna venushchandanaayate.
Antahsaara +viheenaanaam + upadesho. Antahsaara=
inner strength, inherent qualities. Viheenaanaam=
without. Upadesho = guidance, advice. Na = not.
Jaayate = produce any fruitful results. Malayaachala +
sansargaat +na. Malayaachala = Malaya mountain,
known for its Sandalwood trees. Sansargaat =in the
company of. Na = not. Venuh + chandanaayate,
Venuh =bamboo, cane. Chandanaayate = becomes
like Sandalwood tree.
i.e. Giving advice or guidance to persons devoid of
inherent qualities does not produce any fruitful results.
See, the bamboo grown in Malaya mountain along with
Sandalwood trees do not become fragrant like the sandal-
wood trees.
(Malaya mountain range in South India is famous for the
sandalwood trees grown there. Bamboo also grows there,
but it has no fragrance because it does not have any inner
quality like the sandalwood tree . Likewise, persons without
any inner qualities can not benefit by the guidance or the
company of learned persons.)
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