लुभ्धानां याचकः शत्रुर्मूर्खानां बोधको रिपुः |
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चन्द्रमा रिपुः ||
- चाणक्य नीति (१०/६ )
भावार्थ - धन के लोभी व्यक्तियों को भिखारी शत्रु के समान
लगते हैं तथा मूर्ख व्यक्तियों को उन्हें शिक्षा देने वाले लोग
शत्रु के समान लगते हैं | अपने पति से इतर किसी अन्य व्यक्ति
से गुप्त रूप से प्रेम सम्बन्ध रखने वाली स्त्रियों को अपना पति
शत्रु लगता है तथा चोरों को शुक्लपक्ष का चन्द्रमा शत्रु के समान
लगता है |
(शुक्लपक्ष में रातें कम अंधेरी होने के कारण चोरों को चोरी करने
में असुविधा होती है || अतः शुक्लपक्ष का चन्द्रमा उनके लिये शत्रु
के समान होता है | कहा भी है कि -'चोरहि चांदनि रात न भावे ' | )
Lubdhaanaam = greedy per sons. Yaachakah = beggar.
Shatrurmoorkhaanaanaam = Shatruh + moorrkhaanaam.
Shatruh = enemy. Moorkhaanaam = foolish persons.
Bodhako = a teacher. Ripuh = enemy, Jaaara = paramour,
lover of a married person Streenaam = women. Patih =
husband. Shatruschauraanaam = shatruh + chauraanaam.
Chauraanaam= thieves. Chandramaa = the Moon.
i.e. Beggars are like enemies to greedy persons, and teachers
are like enemies to foolish persons. To married women involved
in extra-marital illicit relations with other men, their husbands
are like enemies to them, and for thieves the Moon during its
waxing period is like enemy to them .
(During the waxing fortnight of the Moon the nights are brighter,
which is disadvantageous to the thieves and hence they treat the
Moon as their enemy. )
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