ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी |
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ||
- चाणक्य नीति (८/२१
भावार्थ - एक पिता जिसने बडी धनराशि ऋण के रूप में ली
हो तथा एक माता जो व्यभिचारिणी (दुश्चरित्र ) हो दोनों अपनी
सन्तान के लिये शत्रु के समान होते हैं | किसी व्यक्ति की पत्नी
यदि अत्यन्त सुन्दर हो तथा सन्तान निरक्षर हो तो ये दोनों भी
उसके लिये शत्रु समान ही होते हैं |
(यदि किसी परिवार में पिता कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो या माता
दुश्चरित्र हो, तो दोनों स्थितियों में उनकी संतान का लालन पालन
भली प्रकार नहीं हो पाता है और वे अपनी सन्तान के लिये एक शत्रु
के समान ही होते हैं | स्त्री का अति रूपवती होना भी उसके पति के
लिये तब एक बडी समस्या बन जाती है जब वह उसकी रक्षा करने में
असमर्थ होता है, तथा यदि पुत्र निरक्षर हो तो वह भी अपने पिता के
लिये एक शत्रु के ही समान होता है | )
Rinakartaa pita shatrurmaataa cha vyabhichaarinee.
Bhaaryaa roopavatee shatruh putrah shatrurapanditah.
Rinakartaa = a person who has borrowed money, a debtor.
Pitaa = father. Shatrurmaataa = shatruh + maataa.
Shatruh = an enemy. Maataa = mother. Cha = and
Vyabhichaarinee = a wanton woman , unchaste wife,
Bhaaryaa = wife. Roopvatee = very beaautiful. Putrah =
Son. Shatrurapanditah = shatruh + apanditah. Apanditah=
an illiterate person.
i,e, A father who has incurred a huge debt and a mother
who is a wanton woman, both of them are like enemies of
their children. Likewise , a very beautiful wife and illiterate
son are also like enemies to a person.
(In a family if the father is heavily indebted and the mother
is a wanton woman, the children remain neglected. Under
such circumstances they are really enemies of their children.
A very beautiful wife and an illiterate son are also like
enemies to a person, as providing protection to them is a big
problem.)
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