Thursday, 6 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



न  दुर्जनः साधुदशामुपैति  बहुप्रकारैरपि  शिक्ष्यमाणः   |
आमूलसिक्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ||
                                               - चाणक्य नीति (११/६ )

भावार्थ -       जिस प्रकार नीम  के वृक्ष को उसकी जड में  दूध और घी से
सींचने पर भी उसमें मधुरत्व (मिठास ) नहीं उत्पन्न होता  है , उसी प्रकार 
दुष्ट व्यक्तियों को भी सज्जन नहीं बनाया जा सकता है चाहे उन्हें  अनेक 
प्रकार से  शिक्षित करने का कितना ही प्रयत्न क्यों  न किया जाय  | 

(इस सुभाषित में दुष्ट व्यक्तियों की तुलना एक नीम  के वृक्ष से कर यह 
तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि उनके दुष्ट स्वभाव को अनेक प्रयत्नों से 
भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता है | ) 

Na durjanah  saadhudashaamupaiti bahuprairapi shikshyamaanah,.
Aamoolasiktah payasaa ghrutena  na nimbavruksho madhuratvameti.

Na= not.   Durjanah = a wicked person.    Saadhu +dashaam+upaiti.
Saadhu dasham = nobleness.    Upaiti = acquires.   Bahuprakaaraih +
api.    Bahuprakaareaih = by many various means.         Api = even.
Shikshyamaanah = taught.   Aamoola = right from the root.   Siktah=
watered.   Payasaa = with milk .   Ghrutena = with ghee.   Nimba  -
Neem.   Vruksho = tree.     Madhuratvam + eti.       Madhuratvam =
sweeetness.    Eti = acquires.

i.e.     Just like a Neem tree , which ,even if it is watered at its root with 
milk and ghee does not acquire sweetness , in the same manner a wicked 
person also can not be transformed into a noble person , no matter how 
much different methods are adopted to educate him.

(In this Subhashita a wicked person is compared with a Neem tree to
emphasize the fact that inherent qualities and shortcomings in any thing
can not be changed even by adopting various means.)


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