यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे |
कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ||
- महाभारत (विदुर नीति )
भावार्थ - जिस व्यक्ति द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों के
बारे में मन्त्रणा (विचार) करने, निश्चय करने तथा उसके पश्चात
क्रियान्वयन होने तक अन्य व्यक्ति कुछ भी नहीं जानते हैं , वही
एक पण्डित कहलाता है |
(प्रस्तुत सुभाषित में किसी भी योजना को क्रियान्वित करणे से पूर्व
विचार विमर्श तथा निर्णय को तब तक गोपनीय रखने का परामर्श
दिया गया है जब तक वह कार्य प्रारम्भ न कर दिया जाय | ऐसा नहीं
करने से योजना में अनेक विघ्न बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं | )
Yasya krutyam na jaananti mantram vaa mantritam pare.
Krutamevasya jaananti sa vai pandit uchyate,
Yasya = whose. Krutyam = deeds. Na = not. Jaananti =
Know. Mantram = consultation. Vaa = or. Mantritam =
already consulted. Pare = later, afterwards. Krutam+eva +
asya. Krutam=done. Eva =really. Asya = this. JaananIi=
know.. Sa = that person. Vai = only. Pandira = a learned
person. Uchyate = is called.
i.e. A person , whose actions about a project undertaken by
him are not know to others during the stages of consultations,
finalisation, and implementation , and they know about it when
it is completed, is truly called a learned person.
(This Subhashita advises maintenance of proper secrecy while
planning and implementing any project .If this is not done, many
problems and obstacles arise during implementation of the project.)
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