Monday, 9 September 2013

'हिमालय दिवस 'के उपलक्ष्य मे उत्तराखण्ड् की त्रासदी मे दिवङ्गत हुए व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित |

          आज 'हिमालय दिवस' के उपलक्ष्य मे हिन्दी के मूर्धन्य कवि और छायावाद के प्रवर्तक महान्  कवि और विचारक स्वर्गीय सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'  की इस कालजयी कविता को आप की सेवा मे पुनः प्रस्तुत करता हूं |   'अज्ञेय' जी को हिमालय तथा विशेषतः उत्तराखण्ड् की भूमि से बेहद लगाव था | उनकी अधिकांश कविताओं का यहीं सृजन हुआ था   इस कविता मे  मानव द्वारा प्रकृति के विनाश की पीडा को व्यक्त करते हुए कवि ने जो भविष्यवाणी करीब् ५० वर्ष पूर्व की थी वह् सत्य साबित हुई, क्यों कि कवि एक भविष्यवक्ता भी होता है और उसे नजरन्दाज करना कितना महंगा हमें पडा  वह् अब सबके सामने है |

                             नन्दा / बीस तीस पचास वर्षों में
                             तुम्हारी वन-राजियों की लुगदी बना कर
                             हम  उस पर/ अखबार छाप चुके होंगे
                             तुम्हारे संन्नाटे  को चींथ रहे होंगे
                             हमारे धुंधुवाते शक्तिमान ट्रक
                             तुम्हारे झरने -सोते सॊख् चुके होंगे
                             और तुम्हारी नदियां
                             ला सकेंगी केवल शस्य भक्षी बाढें
                             या आंतों  को उमेठने वाली बीमारियां
                              तुम्हारा आकाश हो चुका होगा
                              हमारे अतिस्वन विमानों के
                             धूम सूत्रों के गुंझर  | ........
                              नन्दा !  जल्दी ही /बीस-तीस -पचास वर्षों में
                              हम  तुम्हारे नीचे एक मरु बिछा चुके होंगे
                              और तुम्हारे उस नदी-धौत सीढी वाले मंदिर में
                              जला करेग एक मरु दीप. |

     आज उत्तराखण्ड की जो दुर्दशा विकास  के नाम पर पर्यावरण  से खिलवाड करने से हुई है उसका वीभत्स चित्रण  उपर्युक्त कविता में 50 वर्ष पूर्व ही कवि ने  कर दिया था |पर हमारे नीति नियन्ताओं द्वारा उसकी अनदेखी का परिणाम हम  भुगतने को अभिशापित  हैं |  भविष्य में भी हम चेतेंगे इस में भी शक है.|
      इस त्रासदी में मारे गये हजारों व्यक्तियों को हमारी सच्ची श्रद्धाञ्जलि  यही होगी कि भविष्य  में पर्यावरण  की सुरक्षा का हम  वचन लें और निष्ठा पूर्वक उसका पालन करें |

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