का प्रीतिः सह मार्जारैः का प्रीतिरवनीपतौ |
गणिकाभिश्च का प्रीतिः का प्रीतिर्भिक्षुकै सह ||
अर्थ - बिल्लियों से , राजओं से, तथा वेश्याओं और भिखारियों से प्रीति करने से क्या लाभ है ?
( इन चारों प्राणियों का व्यवहार सदैव अस्थिर और अप्रत्याशित होता है . अतः प्रकारान्त से इस सुभाषित द्वारा यह तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि इनसे अधिक लगाव न करना ही श्रेयस्कर है )
( इन चारों प्राणियों का व्यवहार सदैव अस्थिर और अप्रत्याशित होता है . अतः प्रकारान्त से इस सुभाषित द्वारा यह तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि इनसे अधिक लगाव न करना ही श्रेयस्कर है )
Kaa preetih saha maarjaaraih kaa preetiravaneepatau.
Ganikaabhishcha kaa preetih kaa preetirbhikshubhkai saha.
Kaa = what. Preetih = friendly relations. Sah = with. Maarjaaraih = cats. Preetiravaneepatau =
Preeti +avaneepatau . Avaneepatau = kings. Ganikaabhishch = prostitutes.. Preetirbhikshukai =
=preeti + bhikshukai. Bhikshukai = beggars.
Of what use is the friendly relations with cats, with kings, and also with prostitutes and beggars ?
(The attitude of all the above four is very unpredictable and unstable. Therefore, the idea behind this Subhashita is that friendship with them is very risky and done with caution or better be avoided.)
Of what use is the friendly relations with cats, with kings, and also with prostitutes and beggars ?
(The attitude of all the above four is very unpredictable and unstable. Therefore, the idea behind this Subhashita is that friendship with them is very risky and done with caution or better be avoided.)
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