Tuesday, 18 November 2014

Today's Subhashita.

अनाहूताः स्वयं  यान्ति  रसास्वादविलोलुपाः |
 निवारिता  न गच्छन्ति  मक्षिका इव भिक्षुकाः ||

अर्थ -     बिना बुलाये ही स्वयं आने वाली और भगाने पर भी न जाने वाली तथा रसास्वादन की विशेष
इच्छुक मक्खियों के समान ही भिखारियों का भी आचरण होता  है  |

(मक्खियों का स्वभाव होता है कि जहां पर भी कोई  रसीली और मीठी वस्तु होती है वे वहां स्वयंएकत्रित
हो जाती हैं और इसी तरह् जहां कहीं भी दावत या सामूहिक भोजन की व्यवस्था होती है वहां भिखारियों का
झुण्ड भी बिना बुलाये पहुंच जाता है | इसी स्वभावगत साम्य को उपर्युक्त सुभाषित में व्यक्त किया गया है |)

Anaahootaah svyam yaanti rasaasvaadavilolupaah.
Nivaaritaa na gacchanti makshikaa iva bhikshukaah.

Anaahootaah = uninvited.     Svyam = oneself.     Yaanti = go.     Rasaasvaada = enjoying the taste
of juices.    Vilolupaah =  very desirous.     Nivaaritaa = on being deterred or forbidden
Na = not.     Gacchanti = go away.     Makshikaa = flies.     Iva = like, than (for comparison)
Bhikshukaah =  beggars.

i.e.     The behaviour of beggars is just like that of flies, who , attracted by sweet and syrupy
substances and food throng a place uninvited and do not go away even on being deterred or warded off.

(The similarity in the attitude and behaviour of flies and beggars has been beautifully underlined in this Subhashita.)




No comments:

Post a Comment