गुरवो बहवः सन्ति शिष्यवित्तापहारकाः |
दुर्लभः स गुरुर्लोके शिष्यचिन्तापहारकः ||
अर्थ - इस संसार मे अपने शिष्यों का धन लूटने वाले गुरु बहुत अधिक संख्या में होते हैं , परन्तु ऐसे गुरु दुर्लभ होते हैं जो अपने शिष्यों की शङ्काओं तथा चिन्ताओं को दूर करते है |
( वर्तमान संदर्भ में जहां शिक्षा व्यवसाय बन गई है और शिक्षा प्राप्त करना बहुत मंहगा हो गया है तथा गुरु शब्द अपनी गरिमा और सम्मान खो चुका है जो उसे पहले प्राप्त था , यह सुभाषित इस समस्या को रेखांकित करता है | तुलसीदास जी ने भी कहा है कि - ' हरइ शिष्य धन शोक न हरई , सो गुरु घोर नरक मंह परई ' |)
Guravo bahavah santi shishyavittaapahaarakah.
Durlabhh sa gururloke shishyachintaapahaarakah.
Gurava= teachers. Bahavah = too many Santi = there are. Sishyavittapahaarakah =
Shishya + vitta + apahaarakah. Shishya = student, pupil. Vitta = money, wealth.
Apahaarakah =plunderer, stealer. Durlabhah =rare, difficult to find. Sa = that.
Gururloke = guruh + loke. Loke = in this world. Shishychintaapahaarakah. = shishya +
chintaa + apahaarakah. Chinta = worries, anxieties, queries.
i.e. In this World there are teachers aplenty who plunder the wealth of their students, but such
teachers are rare who are committed to remove the ignorance and worries of their students.
( In the present context, where imparting education has become a big business without any scruples, and the teachers have lost the halo and respect they used to get in the past, this Subhashita has highlighted this perennial problem of very costly education,which is increasing day by day.)
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