Sunday, 15 March 2015

Today's Subhashita.

हारं  वक्षसि  केनापि  दत्तमज्ञेन  मर्कटः |
लेढि जिघ्रति संक्षिप्यः करोत्युन्नतमासनम् ||

अर्थ -        एक अज्ञानी बन्दर के वक्ष (छाती) में किसी भी परिस्थिति
में हीरे और मोतियों का हार नहीं पहनाना चाहिये क्यों कि वह् उस हार को
अज्ञानता के कारण कोई खाने की वस्तु समझ कर उसे चाट कर, सूंघ  कर ,
हाथों से दबाकर अन्त में उठा कर(गले से उतार कर) उस पर बैठ जायेगा |

(इस सुभाषित का तात्पर्य यही  है अज्ञानी व्यक्तियों  में गुणग्राहता नहीं
होती है और वे मूल्यवान वस्तुओं और विद्वानों का समुचित आदर करना
नहीं जानते  हैं |)

Haaram vakshasi kenaapi dattamagyena markatah.
ledhi jighrati smkshipyah karotyunnatamaasanam.


Haaram = a necklace   Vakshasi = on the chest.   Kenaapi =
Kena +api.     Kenaapi - whichever     Dattamagyena =Dattam
+agyena.     Dattam = given.    Agyena = ignorant, stupid.
Markatah = a monkey.     Ledhi =  by liking.      Jighrati -=
perceives by smelling    Samkshpyah = by compressing.              
Karotyunnatamaasanam = karoti +unnatam + aasanam.  
Karoti - does.   Unnatam = lifting up.   Aasanam = sitting.

i.e.     One should never put a necklace of pearls and jewels on
the chest of an ignorant monkey, because he will  think that it is
an edible thing and will  lick it, smell it, press it and ultimately
lift it from his neck and sit over it.

(The idea behind this Subhashita is that foolish persons can not
appreciate the beauty and importance of valuable things as also
the virtues of learned persons. )

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