Saturday, 3 October 2015

Today's Subhashita.

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने  |
जन्मान्तरसहस्रेषु   दारिद्र्यं  नोपजायते      || - महासुभषितसंग्रह (४७२३)

अर्थ  -    जो व्यक्ति प्रतिदिन 'सूर्य नमस्कार '  करते हैं ,वे हजारों  जन्मान्तर
तक (इस जन्म में  तथा भविष्य मे  हजारों वर्षों  तक ) कभी  भी दरिद्र (धन 
हीन ) नहीं होते हैं |

(सूर्य नमस्कार  दस यौगिक क्रियाओं के एक समूह को कहते हैं जिसे  प्रातः काल
सूर्योदय के समय सूर्य की ओर् दृष्टि कर  के सम्पन्न किया जाता है | इस से
शरीर निरोग रहता है | इसी की उपयोगिता को अतिशयोक्ति के द्वारा इस
सुभाषित में व्यक्त किया गया है |  )

Aadityasya namaskaaram ye kurvanti dine dine.
Janmaantarasahreshu daaridryam nopajaayate.

Aadityasya = of the Sun.     Namaskaaram = offering of respect
with a certain pose.       Ye = thiose persons.    Kurvanti =  do.
perform.    Dine dine = day by day.    Janmaantar = future life.
Sahasreshu = thousands.     Daaridryam = poverty.  Nopajaayate=
na+upajaayate.    Na = not.    Upajaayate = happens, occurs.

i.e.          Those persons who perform 'Soorya Namaskaar'  every day,
never face poverty in their future life (as also the present life) for thousands
of years .

"Soorya Namaskaar" is a set of 10 Yogic postures , which is to be
performed evary day in the morning facing the rising Sun ,which
results in overall mental physical development.  Its utility has been
highlighted in this Subhashita using a hyperbole.)

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