आदित्याद्या ग्रहाः सर्वे यथा तुष्यन्ति दानतः |
सर्वस्वेSपि न तुष्येत जामाता दशमो ग्रहः || - महासुभषितसंग्रह (4728)
अर्थ - सूर्य आदि नवग्रह तो दान आदि देने से संतुष्ट (प्रसन्न) हो जाते हैं
(और अपना दुष्प्रभाव प्रकट नहीं करते हैं ) परन्तु एक दसवें ग्रह के समान
एक दामाद अपना सब् कुछ देने पर भी संतुष्ट नहीं होता है |
(एक दामाद को दसवें ग्रह की संज्ञा दे कर वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष से प्रचुर मात्रा
में दहेज प्राप्त होने पर भी संतुष्ट न होने तथा और अधिक दहेज की मांग करने
की दुष्प्रवृत्ति पर इस सुभाषित द्वारा व्यङ्ग्य किया गिया है | )
Adityaadyaa Grahaah sarve yathaa tushyanti daanatah.
Sarvasyepi na tushyeta jaamaata dashamo Grahh.
Adityaadyaa = Aditya +Adyaa. Aditya = the Sun. Adyaa = etc.
Grahaah = the nine planets, namly the Sun, Moon, Mars, Mercury,
Jupiter, Venus, Saturn, Dragon Head and /Dragon Tail as per India
Astronomy. Sarve = aall. Yathaa = for instance. Tushyeta =
is satisfied, pleased. Daanatah = by giving away as charity.
Sarvasvepi = sarvasva =api Sarvsva = all wealth. Api = even.
Na= not. Tushyeta = satiosfied. Jaamaataa = son- in- law..
Dashamo = tenth. Grahh = Planet.
i.e. The Sun and other 8 planets are pleased (and do not show their
ill effects on people) if people indulge in charitable deeds, but like a tenth
Planet a son-in-law is never pleased even on being offered all the wealth
one has.
(This Subhashita is a satire on the tendency of demanding more and more
dowry from a bride's father by branding a bride-groom as the tenth
evil planet.
सर्वस्वेSपि न तुष्येत जामाता दशमो ग्रहः || - महासुभषितसंग्रह (4728)
अर्थ - सूर्य आदि नवग्रह तो दान आदि देने से संतुष्ट (प्रसन्न) हो जाते हैं
(और अपना दुष्प्रभाव प्रकट नहीं करते हैं ) परन्तु एक दसवें ग्रह के समान
एक दामाद अपना सब् कुछ देने पर भी संतुष्ट नहीं होता है |
(एक दामाद को दसवें ग्रह की संज्ञा दे कर वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष से प्रचुर मात्रा
में दहेज प्राप्त होने पर भी संतुष्ट न होने तथा और अधिक दहेज की मांग करने
की दुष्प्रवृत्ति पर इस सुभाषित द्वारा व्यङ्ग्य किया गिया है | )
Adityaadyaa Grahaah sarve yathaa tushyanti daanatah.
Sarvasyepi na tushyeta jaamaata dashamo Grahh.
Adityaadyaa = Aditya +Adyaa. Aditya = the Sun. Adyaa = etc.
Grahaah = the nine planets, namly the Sun, Moon, Mars, Mercury,
Jupiter, Venus, Saturn, Dragon Head and /Dragon Tail as per India
Astronomy. Sarve = aall. Yathaa = for instance. Tushyeta =
is satisfied, pleased. Daanatah = by giving away as charity.
Sarvasvepi = sarvasva =api Sarvsva = all wealth. Api = even.
Na= not. Tushyeta = satiosfied. Jaamaataa = son- in- law..
Dashamo = tenth. Grahh = Planet.
i.e. The Sun and other 8 planets are pleased (and do not show their
ill effects on people) if people indulge in charitable deeds, but like a tenth
Planet a son-in-law is never pleased even on being offered all the wealth
one has.
(This Subhashita is a satire on the tendency of demanding more and more
dowry from a bride's father by branding a bride-groom as the tenth
evil planet.
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