अभ्यासस्य प्रसादेन वायोरपि जयो भवेत् |
अणिमाद्यष्टासिद्धीनां भाजनं भवति ध्रुवं || - सुभाषितरत्नाकर
अर्थ = निरन्तर अभ्यास और प्रयत्न करने के फलस्वरूप वायु
(हवा) को भी वश में किया जा सकता है और ऐसा व्यक्ति निश्चय
ही अणिमा आदि आठ सिद्धियों को प्राप्त करने के योग्य भी हो सकता
है |
(मानव ने जो भी प्रगति की है और जो आविष्कार किये हैं वह सभी
निरन्तर अभ्यास द्वारा ही संभव हुआ है | शास्त्रों में मनुष्य द्वारा प्राप्त
आठ प्रकार की दैवी शक्तियों का वर्णन है जो अणिमा, महिमा गारिमा,
लघिमा, प्राप्ति. प्राकाम्य.ईशित्व और वशित्व कहे गये हैं | इस सुभाषित
का तात्पर्य यही है कि अभ्यास से ऐसी शक्तियां भी प्राप्त हो सकती हैं
जिसे हमारे वैज्ञानिक प्राप्त करने में लगे हुए है | )
Abhyaasasya prasaadena vaayorapi jayo bhavet.
Animaadyashtaasiddhinaam bhajanam bhavati dhruvam.
Abhyaasasya = by doing regular practice Prasaadena =
by the graciousness or as a result of. Vayorapi = vayuh+
api. Vaayu = wind, air. Api = even Jayo= conquered
Bhavet = becomes, happens. Animaadyaashtaasiddheenaam=
animaa +aadi + ashtaa + siddheenaaam Animaa = the name of a
'Siddhi;. Adi = etc.. Ashtaa = eight. Siddhinaam = In Hindu
Mythology eight types of supernatural powers are mentioned namely
Anima,Mahima,Garima, Laghima, Praapti, Praakaamya, Ishitva and
Vashitva. (fore details please see Vikipedia on thr Internet.) Bhajanam =
entitled to. Bhavati = becomes. Dhruvam = certainly.
i.e. Through constant and regular practice it is possible even
to conquer (control) the air, and certainly through it even the
eight supernatural powers Animaa etc can also be achieved.
(The progress achieved by the mankind so far is as a result of
numerous inventions made by scientists in the past, which requires
continuous dedication and practice. This Subhashita says that
by doing so even attaining the eight supernatural powers is also
possible.)
अणिमाद्यष्टासिद्धीनां भाजनं भवति ध्रुवं || - सुभाषितरत्नाकर
अर्थ = निरन्तर अभ्यास और प्रयत्न करने के फलस्वरूप वायु
(हवा) को भी वश में किया जा सकता है और ऐसा व्यक्ति निश्चय
ही अणिमा आदि आठ सिद्धियों को प्राप्त करने के योग्य भी हो सकता
है |
(मानव ने जो भी प्रगति की है और जो आविष्कार किये हैं वह सभी
निरन्तर अभ्यास द्वारा ही संभव हुआ है | शास्त्रों में मनुष्य द्वारा प्राप्त
आठ प्रकार की दैवी शक्तियों का वर्णन है जो अणिमा, महिमा गारिमा,
लघिमा, प्राप्ति. प्राकाम्य.ईशित्व और वशित्व कहे गये हैं | इस सुभाषित
का तात्पर्य यही है कि अभ्यास से ऐसी शक्तियां भी प्राप्त हो सकती हैं
जिसे हमारे वैज्ञानिक प्राप्त करने में लगे हुए है | )
Abhyaasasya prasaadena vaayorapi jayo bhavet.
Animaadyashtaasiddhinaam bhajanam bhavati dhruvam.
Abhyaasasya = by doing regular practice Prasaadena =
by the graciousness or as a result of. Vayorapi = vayuh+
api. Vaayu = wind, air. Api = even Jayo= conquered
Bhavet = becomes, happens. Animaadyaashtaasiddheenaam=
animaa +aadi + ashtaa + siddheenaaam Animaa = the name of a
'Siddhi;. Adi = etc.. Ashtaa = eight. Siddhinaam = In Hindu
Mythology eight types of supernatural powers are mentioned namely
Anima,Mahima,Garima, Laghima, Praapti, Praakaamya, Ishitva and
Vashitva. (fore details please see Vikipedia on thr Internet.) Bhajanam =
entitled to. Bhavati = becomes. Dhruvam = certainly.
i.e. Through constant and regular practice it is possible even
to conquer (control) the air, and certainly through it even the
eight supernatural powers Animaa etc can also be achieved.
(The progress achieved by the mankind so far is as a result of
numerous inventions made by scientists in the past, which requires
continuous dedication and practice. This Subhashita says that
by doing so even attaining the eight supernatural powers is also
possible.)
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