क्रोधमुग्धधियां नैव सुखं कालत्रयेSपि च |
दृष्टं कदाप्युलूकानां क्रीडनं फुल्लपङ्कजे ||- सुभाषित रत्नाकर
अर्थ - जिन व्यक्तियों का मन सदा क्रोध से भरा रहता है उन्हें
न तो वर्तमान में और न ही भविष्य में कभी भी सुख प्राप्त होता
है | क्या तुमने कभी उल्लओं को खिले हुए कमलों से भरे हुए किसी
सरोवर में क्रीडा करते हुए देखा है ?
(उपर्युक्त सुभाषित 'क्रोध निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संग्रहीत किया
गया है और इसमें क्रोधी व्यक्तियों की तुलना उल्लुओं से की गयी
है जिनके लिये खिले हुए फूलों का सौन्दर्य निरर्थक है | इसी प्रकार
क्रोधी व्यक्ति भी अपने चारों ओर के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द
क्रोध के वशीभूत होने के कारण प्राप्त नहीं कर पाता है |)
Krodhamugdhadhiyaam naiva sukham kaalatrayepi cha.
drushtam kadaapyulookaanaam kreedanam phullapankaje.
Krodhamugdhadhiyaam= krodha +mugdha+dhiyaam.
Krodha = anger. Mugdha =bewildered, perplexed.
Dhiyaam = mentally. Naiva = not at all, hardly. Sukham =
happiness, comfort. Kaalatrayopi = kaalatraye + api.
Kaalatraya = present and future. Cha = and. Drushtam =
Seen. Kadaapyulookaanaam = kadaapi+ulookaanaam.
Kadaapi = at any time. Ulookaanaam = Owls. Kreedanam =
playing froliking. Phullapankaje = full bloom of flowers.
Pankaje = lotus flowers.
i.e. Those persons whose mind is always in a state of bewilderment
due to their angry nature, neither feel happy and comfortable at
present nor in the future.. Has any one ever seen owls enjoying the
blooming lotus flowers in a lake ?
(The above Subhashita has been classified under the head 'censuring
the Anger:. Here the author has compared an angry person to an Owl,
who can not enjoy the bounties of nature. )
दृष्टं कदाप्युलूकानां क्रीडनं फुल्लपङ्कजे ||- सुभाषित रत्नाकर
अर्थ - जिन व्यक्तियों का मन सदा क्रोध से भरा रहता है उन्हें
न तो वर्तमान में और न ही भविष्य में कभी भी सुख प्राप्त होता
है | क्या तुमने कभी उल्लओं को खिले हुए कमलों से भरे हुए किसी
सरोवर में क्रीडा करते हुए देखा है ?
(उपर्युक्त सुभाषित 'क्रोध निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संग्रहीत किया
गया है और इसमें क्रोधी व्यक्तियों की तुलना उल्लुओं से की गयी
है जिनके लिये खिले हुए फूलों का सौन्दर्य निरर्थक है | इसी प्रकार
क्रोधी व्यक्ति भी अपने चारों ओर के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द
क्रोध के वशीभूत होने के कारण प्राप्त नहीं कर पाता है |)
Krodhamugdhadhiyaam naiva sukham kaalatrayepi cha.
drushtam kadaapyulookaanaam kreedanam phullapankaje.
Krodhamugdhadhiyaam= krodha +mugdha+dhiyaam.
Krodha = anger. Mugdha =bewildered, perplexed.
Dhiyaam = mentally. Naiva = not at all, hardly. Sukham =
happiness, comfort. Kaalatrayopi = kaalatraye + api.
Kaalatraya = present and future. Cha = and. Drushtam =
Seen. Kadaapyulookaanaam = kadaapi+ulookaanaam.
Kadaapi = at any time. Ulookaanaam = Owls. Kreedanam =
playing froliking. Phullapankaje = full bloom of flowers.
Pankaje = lotus flowers.
i.e. Those persons whose mind is always in a state of bewilderment
due to their angry nature, neither feel happy and comfortable at
present nor in the future.. Has any one ever seen owls enjoying the
blooming lotus flowers in a lake ?
(The above Subhashita has been classified under the head 'censuring
the Anger:. Here the author has compared an angry person to an Owl,
who can not enjoy the bounties of nature. )
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