गुञ्जापुञ्जपरंपरापरिचयाद्भिल्लीजनैरुज्झितं |
मुक्ता दाम न धारयन्ति किमहो कण्ठे कुरङ्गीदृशः || - सुभषितरत्नाकर
अर्थ - अहो ! देखो ना , ये भीलनियां भी जो आभूषणों के रूप में केवल
गुञ्जा के दानों से बने हुए आभूषणों से ही परिचित होती हैं , वे मोतियों की
मालाऐं गले में पहनने को तुलना मे वन में एक हिरण का आखेट (शिकार)
करना ही पसंद करेंगी |
(किसी भी वस्तु का मूल्य सामाजिक परिवेश, रहनसहन और मानसिकता
पर आधारित होता है | एक आदिवासी के लिये मूल्यवान आभूषणों की
तुलना में एक वन्य पशु का आखेट अधिक महात्वपूर्ण है क्योंकि उस से
उसकी उदरपूर्ति होती हैं | इसी तथ्य को उपर्युक्त उदाहरण द्वारा इस सुभाषित
में प्रतिपादित किया गया है |)
Gunjaa-punja-paramparaa-parichaayad- bhillee-janairujjhitam..
Mukta daama na dhaarayanti kimaho kanthe kurangeedrushh.
Gunjaa = Rosary Pea (also called 'ratti' in vernacular ) Punja = heap.
Parampara = tradition. Pasrichayaat = knowing, Bhilleejanaih =
women of aboriginal tribe called 'Bheel' . Ujjhitam = abandoned.
Muktaa = pearls Daama = garland. Na = not. Dhaarayanti =
wear. Kimaho = kim +aho Kim = what ? Aho = Oh.
Kanthe = neck. Kurangeedrushh = kurangee + drushh.
Kurangee = a deer. Drushh = on sighting.
i.e. Oh ! just see how these women of aboriginal Bheel tribe ,
who are aware only of ornaments made of Rosary Peas, on seeing a
deer would prefer to go for hunting it rather than wearing a necklace
of pearls offered to them .
( The idea behind this Subhashita is that the price of a thing is always
relative and dependent on the circumstances , social background and
the needs of people.)
मुक्ता दाम न धारयन्ति किमहो कण्ठे कुरङ्गीदृशः || - सुभषितरत्नाकर
अर्थ - अहो ! देखो ना , ये भीलनियां भी जो आभूषणों के रूप में केवल
गुञ्जा के दानों से बने हुए आभूषणों से ही परिचित होती हैं , वे मोतियों की
मालाऐं गले में पहनने को तुलना मे वन में एक हिरण का आखेट (शिकार)
करना ही पसंद करेंगी |
(किसी भी वस्तु का मूल्य सामाजिक परिवेश, रहनसहन और मानसिकता
पर आधारित होता है | एक आदिवासी के लिये मूल्यवान आभूषणों की
तुलना में एक वन्य पशु का आखेट अधिक महात्वपूर्ण है क्योंकि उस से
उसकी उदरपूर्ति होती हैं | इसी तथ्य को उपर्युक्त उदाहरण द्वारा इस सुभाषित
में प्रतिपादित किया गया है |)
Gunjaa-punja-paramparaa-parichaayad- bhillee-janairujjhitam..
Mukta daama na dhaarayanti kimaho kanthe kurangeedrushh.
Gunjaa = Rosary Pea (also called 'ratti' in vernacular ) Punja = heap.
Parampara = tradition. Pasrichayaat = knowing, Bhilleejanaih =
women of aboriginal tribe called 'Bheel' . Ujjhitam = abandoned.
Muktaa = pearls Daama = garland. Na = not. Dhaarayanti =
wear. Kimaho = kim +aho Kim = what ? Aho = Oh.
Kanthe = neck. Kurangeedrushh = kurangee + drushh.
Kurangee = a deer. Drushh = on sighting.
i.e. Oh ! just see how these women of aboriginal Bheel tribe ,
who are aware only of ornaments made of Rosary Peas, on seeing a
deer would prefer to go for hunting it rather than wearing a necklace
of pearls offered to them .
( The idea behind this Subhashita is that the price of a thing is always
relative and dependent on the circumstances , social background and
the needs of people.)
No comments:
Post a Comment