आगतव्ययशीलस्य कृषत्वमतिशोभते |
द्वितीयश्चन्द्रमा वन्द्यो न वन्द्यः पूर्णचन्द्रमा || - महासुभषितसंग्रह (4375)
अर्थ - अर्जित धन को खुले हाथों से व्यय करने वाला व्यक्ति कम
धनवान होने पर भी सुशोभित (सम्मानित) होता है | इसी कारण द्वितीया
तिथि का चन्द्रमा पौर्णमासी के चन्द्रमा की तुलना में अधिक वन्दनीय होता है |
(कृष्ण पक्ष के बाद शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन वृद्धि पा कर पौर्णमासी
को पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है और फिर कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन एक कला
कम हो कर अमावस्या के दिन आकाश में नहीं दिखाई देता है | इस परिस्थिति
को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त करने का तात्पर्य यह् है कि जो व्यक्ति धन
संपत्ति में वृद्धि के साथ साथ उसको अधिक व्यय करता है वह् अधिक वन्द्य
है न कि वह व्यक्ति जो धन को संग्रह किये रहता है | ऐसे व्यक्ति का धन
उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे कि पौर्णमासी के बाद धीरे धीरे चन्द्रमा का
आकार छोटा होता जाता है | )
Aagata -vyayasheelasya Krushaatvam-ati-shobhate,
Dviteeyashchandramaa vandyo na vandyah Poornachandramaa.
Aagata = arrived. Vyayasheelas ya = extravagant. Krushatvam =
emaciation. Ati = very. Shobhate = looks splendid, embellished.
Dviteeyashchandramaa = Dviteeyah +chandrama. Dviteeyah =
the second day of the fortnight of a waxing Moon. Chandrama =
ther Moon. Vandyo = adored, praised. Na = not. Vandyah =
adorable. Poornachandrama = the full Moon.
i.e. An extravagant person with progressively increasing income is
adored very much even if he may not be very rich. Due to this very
reason the Moon on the second day of its waxing fortnight is adored
more than the full Moon on the 15th day.
(The phenomenon of waxing and waning of the Moon has been used
as a simile in the above Subhashita to emphasise the fact that a person
of moderate means and with progressively increasing income but being
extravagant is more adorable than a rich person who does not spend his
wealth, as such wealth gets destroyed in the long run, just like the full
Moon during its waning period and ultimately is not visible on the sky.)
द्वितीयश्चन्द्रमा वन्द्यो न वन्द्यः पूर्णचन्द्रमा || - महासुभषितसंग्रह (4375)
अर्थ - अर्जित धन को खुले हाथों से व्यय करने वाला व्यक्ति कम
धनवान होने पर भी सुशोभित (सम्मानित) होता है | इसी कारण द्वितीया
तिथि का चन्द्रमा पौर्णमासी के चन्द्रमा की तुलना में अधिक वन्दनीय होता है |
(कृष्ण पक्ष के बाद शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन वृद्धि पा कर पौर्णमासी
को पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है और फिर कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन एक कला
कम हो कर अमावस्या के दिन आकाश में नहीं दिखाई देता है | इस परिस्थिति
को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त करने का तात्पर्य यह् है कि जो व्यक्ति धन
संपत्ति में वृद्धि के साथ साथ उसको अधिक व्यय करता है वह् अधिक वन्द्य
है न कि वह व्यक्ति जो धन को संग्रह किये रहता है | ऐसे व्यक्ति का धन
उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे कि पौर्णमासी के बाद धीरे धीरे चन्द्रमा का
आकार छोटा होता जाता है | )
Aagata -vyayasheelasya Krushaatvam-ati-shobhate,
Dviteeyashchandramaa vandyo na vandyah Poornachandramaa.
Aagata = arrived. Vyayasheelas ya = extravagant. Krushatvam =
emaciation. Ati = very. Shobhate = looks splendid, embellished.
Dviteeyashchandramaa = Dviteeyah +chandrama. Dviteeyah =
the second day of the fortnight of a waxing Moon. Chandrama =
ther Moon. Vandyo = adored, praised. Na = not. Vandyah =
adorable. Poornachandrama = the full Moon.
i.e. An extravagant person with progressively increasing income is
adored very much even if he may not be very rich. Due to this very
reason the Moon on the second day of its waxing fortnight is adored
more than the full Moon on the 15th day.
(The phenomenon of waxing and waning of the Moon has been used
as a simile in the above Subhashita to emphasise the fact that a person
of moderate means and with progressively increasing income but being
extravagant is more adorable than a rich person who does not spend his
wealth, as such wealth gets destroyed in the long run, just like the full
Moon during its waning period and ultimately is not visible on the sky.)
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