आत्मच्छिद्रं न जानाति परच्छिद्राणि पश्यति |
स्वच्छिद्रं यदि जानाति परच्छिद्रं न पश्यति || -महासुभषितसंग्रह (४५४६)
अर्थ - जो व्यक्ति अपने दोषों को तो नहीं जानता है परन्तु अन्य
व्यक्तियों के दोषों को ही ढूढता रहता है , यदि स्वयं अपने दोषों को
जानता तो वह् फिर अन्य व्यक्तियों के दोषों को नहीं ढूढता |
(कुछ लोगों की प्रवृत्ति होती है कि अपने स्वयं के दोषों की अनदेखी
कर अन्य व्यक्तियों का छिद्रान्वेषण ही करते रहते है.| इस सुभाषित
द्वारा ऐसे व्यक्तियों पर व्यङ्ग्य किया गया है | )
Aatmacchidram na jaanaati paracchidraani pashyati.
shvacchidram yadi jaanaati paracchidram na pashyati.
Aatmacchidram =Aatma +chidram. Aatma = self, one's own.
Chidram = infermity, defects, hole. Na = not. Jaanati = knows,
Para = other persons; Sva = of self. Yadi = if.
i.e. A person who does not know his own defects but always
tries to find faults of others, will no longer do so if he knew his
own defects.
( This Subhashita is a satire on those persons who try to find
faults in others but willingly ignore their own defects.)
स्वच्छिद्रं यदि जानाति परच्छिद्रं न पश्यति || -महासुभषितसंग्रह (४५४६)
अर्थ - जो व्यक्ति अपने दोषों को तो नहीं जानता है परन्तु अन्य
व्यक्तियों के दोषों को ही ढूढता रहता है , यदि स्वयं अपने दोषों को
जानता तो वह् फिर अन्य व्यक्तियों के दोषों को नहीं ढूढता |
(कुछ लोगों की प्रवृत्ति होती है कि अपने स्वयं के दोषों की अनदेखी
कर अन्य व्यक्तियों का छिद्रान्वेषण ही करते रहते है.| इस सुभाषित
द्वारा ऐसे व्यक्तियों पर व्यङ्ग्य किया गया है | )
Aatmacchidram na jaanaati paracchidraani pashyati.
shvacchidram yadi jaanaati paracchidram na pashyati.
Aatmacchidram =Aatma +chidram. Aatma = self, one's own.
Chidram = infermity, defects, hole. Na = not. Jaanati = knows,
Para = other persons; Sva = of self. Yadi = if.
i.e. A person who does not know his own defects but always
tries to find faults of others, will no longer do so if he knew his
own defects.
( This Subhashita is a satire on those persons who try to find
faults in others but willingly ignore their own defects.)
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