Monday, 18 April 2016

Today's Subhashita.

आदितस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने |
जन्मान्तर सहस्रेषु दारिद्र्यं  नोपजायते     || -  महासुभषित म ग्रह (4723)

अर्थ -     जो व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं वे इस जन्म में 
और भविष्य के हजारों जन्मों में भी  कभी भी दरिद्र  नहीं  होते हैं |  

(सूर्य नमस्कार दस योगिक मुद्राओं के एक समूह को कहते हैं जिन्हें 
प्रातःकाल उदय होते  हुए सूर्य की ओर् उन्मुख हो कर किया जाता है 
तथा  स्नान करते समय सूर्य को जल का अर्घ्य दे कर उसकी आराधना 
की जाती है |  इसी अनुष्ठान  की महत्ता को इस सुभाषित द्वारा   व्यक्त 
किया गया है ) 
 
Aadityasya  namaskaaram  ye  kurvanti  dine dine/
Janmaantarasahasreshu  daaridryam nopajaayate. 

Aadityasya =  of the Sun.    Namaskaaram =  offer of homage.
Ye = those persons.    Kurvanti = do.     Dine dine =  daily.
Janmaantara = future life          Sahasreshu = thousands.
Daaridryam = poverty.     Nopajaayate = na + upajaayate.
Na = not.     Upajaayate = happen..

i.e.    Those persons who offer homage to the rising Sun daily (as
prescribed in Yoga) have never  to face poverty in their life and
thousands of lives in future as well.

( 'Soorya Namaskaar' is a collection of ten Yogic postures, which is 
best performed early in the morning by facing the rising Sun and 
offering homage to  it...  These yogic postures combined with  the 
benefit of getting up early in the morning,  keep a person healthy. 
This Subhashita eulogizes this very fact by using a hyperbole.) 

No comments:

Post a Comment