आशाया कृतदासो यः स दासः सर्वदेहिनाम |
आशा दासीकृता येन तस्य दासायते जगत् || - महासुभषितसंग्रह (5413)
भावार्थ - जिस व्यक्ति को उसके मन में उत्पन्न होने वाली आशा
(इच्छाओं ) ने अपना दास बना लिया हो वह् फिर सारे प्राणिमात्र का दास
बन कर रह जाता है | इसके विपरीत जिस व्यक्ति ने आशा को ही अपना
दास बना लिया हो तो सारा संसार उसका दास हो जाता है |
(किसी वस्तु की आशा करना मानव स्वभाव की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया
है परन्तु जब् यह सीमा से बाहर हो जाती है तो लोभ में और अन्ततः
तृष्णा में परिवर्तित हो जाती है और मनुष्य अपना विवेक खो देता है | इस
सुभाषित में मनुष्य द्वारा अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करने पर बल
दिया गया है |)
Aashaata krutadaaso yah sa dash sarvadehinaam.
Aashaa daaseekrutaa yena tasya dasaayate jagat.
Aashayaa = hope, expectation, desire. Krutadaaso = kruta +
daaso. Kruta + made. Daaso = a slave. Yah =whom.
Sah = he. Sarvadehinaam = of all living beings.
Daaseekrutaa = enslaved. Yena = whosoever. Tasya = his.
Dasaayate = becomes slave. Jagat = this world.
i.e. A person whose mind has been enslaved by the insatiable
desire to possess every thing, ultimately becomes a slave of all
living beings., whereas a person who has enslaved this desire itself
is able to enslave the whole world.,
(The desire tio have some thing is a natural tendency among men.
But when it crosses the safe limit it turns into greed , which results
in loss of reasoning among men. This Subhashita exhorts us to
keep our desires under check .and not become slave of our desires.)
आशा दासीकृता येन तस्य दासायते जगत् || - महासुभषितसंग्रह (5413)
भावार्थ - जिस व्यक्ति को उसके मन में उत्पन्न होने वाली आशा
(इच्छाओं ) ने अपना दास बना लिया हो वह् फिर सारे प्राणिमात्र का दास
बन कर रह जाता है | इसके विपरीत जिस व्यक्ति ने आशा को ही अपना
दास बना लिया हो तो सारा संसार उसका दास हो जाता है |
(किसी वस्तु की आशा करना मानव स्वभाव की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया
है परन्तु जब् यह सीमा से बाहर हो जाती है तो लोभ में और अन्ततः
तृष्णा में परिवर्तित हो जाती है और मनुष्य अपना विवेक खो देता है | इस
सुभाषित में मनुष्य द्वारा अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करने पर बल
दिया गया है |)
Aashaata krutadaaso yah sa dash sarvadehinaam.
Aashaa daaseekrutaa yena tasya dasaayate jagat.
Aashayaa = hope, expectation, desire. Krutadaaso = kruta +
daaso. Kruta + made. Daaso = a slave. Yah =whom.
Sah = he. Sarvadehinaam = of all living beings.
Daaseekrutaa = enslaved. Yena = whosoever. Tasya = his.
Dasaayate = becomes slave. Jagat = this world.
i.e. A person whose mind has been enslaved by the insatiable
desire to possess every thing, ultimately becomes a slave of all
living beings., whereas a person who has enslaved this desire itself
is able to enslave the whole world.,
(The desire tio have some thing is a natural tendency among men.
But when it crosses the safe limit it turns into greed , which results
in loss of reasoning among men. This Subhashita exhorts us to
keep our desires under check .and not become slave of our desires.)
सर्वं अधितं तेन। तेन सर्वं अनुष्ठितं।।
ReplyDeleteयेन आशा प्रथक कृत्वा। नैराशा अवलम्बितं ।। [हितोपदेश]
सर्वं अधितं तेन (उसने सब अध्ययन कर लिया) । तेन सर्वं अनुष्ठितं (उसने सारे अनुष्ठान कर लिए) ।। येन आशा प्रथक कृत्वा (जिसने आशा-वासना छोड़ दी) । नैराशा अवलम्बितं ।।
उपर्युक्त सुभाषित के संदर्भ मे आपने जो टिप्पणी की है उसके लिये धन्यवाद | तृष्णा निन्दा शीर्षक से भी बहुत सुभाषितों में नैराश्य अवलंबन की राय दी है परन्तु वह् नैराश्य नकारात्मक नहीं होना चाहिये |
ReplyDeleteकर्मण्यवाधिकरस्तु माफलेषु कदाचन ' वाली भावना होनी चाहिये |