Monday, 16 May 2016

Today's Subhashita.

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः स तु जीवति  |
काकोSपि  किं  न कुरुते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् ||  -पञ्चतन्त्र 

भावार्थ -      जिस व्यक्ति के जीवित रहने के तरीके से बहुत से 
अन्य व्यक्तियों का जीवनयापन संभव होता है वे ही वास्तव में 
 सच्चा जीवन जीते हैं ,अन्यथा  एक साधारण  कव्वा  भी  अपना 
पेट भरने के लिये अपनी चोंच से क्या क्या नहीं कर  लेता है ?

(एक क्षुद्र से क्षुद्र प्राणी जीवित रहने के लिये कुछ न  कुछ  प्रयत्न 
 करता रहता  है परन्तु महान् व्यक्तियों के प्रयत्नों से समाज के गरीब 
तथा पिछडे  वर्ग के लोगों को भी अच्छा जीवन जीने के लिये सहायता 
और प्रेरणा मिलती है |  इस सुभाषित  में ऐसे ही  महान् व्यक्तियों 
की  प्रसंशा की गयी है |  एक  कवि ने भी कहा है कि  - "अपने लिये 
जिये तो क्या जिये, तू  जी ऐ दिल जमाने  के लिये " |

Yasmin jeeevati jeevanti bahavah sa tu jeevati .
Kaakopi kim na kurute chanchaa svodarapooranam.

Yasmin = in whose.   Jeevati = being alive.    Jeevanti =
remain alive.    Bahavah = too many.    Sa = he.    Tu = but,
and.     Jeevati = really lives.     Kaakopi = kaako + api.
Kaako = a crow.   Api = even.    Kim  = what .    Na = not.
Kurute = does.    Chanchvaa - with his beak,    Sva  -
one's own.  Udarapooranam = , to feed or support himself, 

i.e.    A person whose way of living results in  helping  a large
number of  poor and needy persons to lead a proper life, really 
lives a meaningful life. Otherwise, what not even  an ordinary 
crow does with his beak just to feed and support himself ? 

(This Subhashita praises those virtuous persons,who  besides
 sustaining themselves also help a large number of other needy 
persons to  earn a decent living.       Only such persons live a 
meaningful life.)
  

2 comments:

  1. A very nice subhashita which everyone should apply in their lives

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  2. यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः सोऽत्र जीवति Can I get source of this Quote ?

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