यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः स तु जीवति |
काकोSपि किं न कुरुते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || -पञ्चतन्त्र
भावार्थ - जिस व्यक्ति के जीवित रहने के तरीके से बहुत से
अन्य व्यक्तियों का जीवनयापन संभव होता है वे ही वास्तव में
सच्चा जीवन जीते हैं ,अन्यथा एक साधारण कव्वा भी अपना
पेट भरने के लिये अपनी चोंच से क्या क्या नहीं कर लेता है ?
(एक क्षुद्र से क्षुद्र प्राणी जीवित रहने के लिये कुछ न कुछ प्रयत्न
करता रहता है परन्तु महान् व्यक्तियों के प्रयत्नों से समाज के गरीब
तथा पिछडे वर्ग के लोगों को भी अच्छा जीवन जीने के लिये सहायता
और प्रेरणा मिलती है | इस सुभाषित में ऐसे ही महान् व्यक्तियों
की प्रसंशा की गयी है | एक कवि ने भी कहा है कि - "अपने लिये
जिये तो क्या जिये, तू जी ऐ दिल जमाने के लिये " |
Yasmin jeeevati jeevanti bahavah sa tu jeevati .
Kaakopi kim na kurute chanchaa svodarapooranam.
Yasmin = in whose. Jeevati = being alive. Jeevanti =
remain alive. Bahavah = too many. Sa = he. Tu = but,
and. Jeevati = really lives. Kaakopi = kaako + api.
Kaako = a crow. Api = even. Kim = what . Na = not.
Kurute = does. Chanchvaa - with his beak, Sva -
one's own. Udarapooranam = , to feed or support himself,
i.e. A person whose way of living results in helping a large
number of poor and needy persons to lead a proper life, really
lives a meaningful life. Otherwise, what not even an ordinary
crow does with his beak just to feed and support himself ?
(This Subhashita praises those virtuous persons,who besides
sustaining themselves also help a large number of other needy
persons to earn a decent living. Only such persons live a
meaningful life.)
A very nice subhashita which everyone should apply in their lives
ReplyDeleteयस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः सोऽत्र जीवति Can I get source of this Quote ?
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